—- ओम प्रकाश खरे
(१)
पति करता पत्नी वरण ,
पत्नी दे पति साथ ।
जीवन के अन्तिम प्रहर,
रहें न कभी अनाथ ।।
(२)
पति-पत्नी के प्रेम का ,
बन्धन है अनमोल ।
स्नेह,प्रेम,करुणा,दया ,
का अमृतमय घोल ।।
(३)
पारस्परिक लगाव ही ,
जीवन का आधार ।
प्रेम रहे सद्भाव हो,
निश्चित बेड़ा पार ।।
(४)
आँखें सजल न हों कभी,
कष्ट रहें ना पास ।
पति-पत्नी के नेह का ,
अटल रहे विश्वास ।।
(५)
जीवन सुखमय ही रहे,
उर में हो विश्वास ।
भाव समर्पण के रहें ,
जब तक तन में प्राण ।।
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उपरोक्त दोहे मौलिक एवम् स्वरचित हैं ।
© ओम प्रकाश खरे,जौनपुर ।(उ०प्र०)
१८.१०.२०२०
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