स्व.नन्दराम लखेरा : एक जीवट व्यक्तित्व

डॉ सी एस वर्मा की✒️ से..             *** 'मृत्यु एक अटल सत्य है'.. संसार मे जो भी प्राणी आता है..उसका जाना भी अवश्यंभावी होता है ।  यह सब कुछ जानते हुए भी  अपनों के जाने का दुख होता है लेकिन जीवन मे *कुछ लोगों से इतना करीब का रिश्ता रहता है कि उनके बिछोह को सहन … Continue reading स्व.नन्दराम लखेरा : एक जीवट व्यक्तित्व

नीलम व्यास स्वयमसिद्धा

संस्मरणबचपन बचपन के सुहाने दिन आज भी स्मृति पटल पर सतरंगी छटा बिखेर ही देते है।मेरा बचपन मेरे पापा की स्नेह धारा से लबालब रहा है।मैं अपने पापा की सदा से लाडली रही हूँ,आज पापा इस दुनिया मे नहीं है लेकिन उनकी यादें सदा मेरे मन मे अमिट हैं।बचपन में पापा से जिद करके मनाया … Continue reading नीलम व्यास स्वयमसिद्धा

डॉ।। वसुधा पु.कामत

संस्मरणदिल को आहत पहुंचने के बाद……कुछ ऐसी बातें याद आ जाती हैं कि लगता हैं , पहले बडे़ बुजुर्ग जो भी हमें सलाह देते वह सही होता था । पर ………हम जैसे पढ़े लिखे कहलानेवाले उस समय उन बातों का नज़रंदाज़ करते थे या फिर थोडे़ दिन तक अमल में लाते थे । इन्सान ठोकरे … Continue reading डॉ।। वसुधा पु.कामत

डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

गुड़ गुड़ शब्द …सुनते ही पीला गन्ने के रस से बना मीठा सा गोल मटोल सा गुड़ का डेला नज़रों के सामने नाचने लगता है ।कई मुहावरो मेंं इसे स्थान प्राप्त है …जैसी गुड़ खाये गूलगुलों से परहेज करे ॥जितना गुड़ डालो उतना मीठा होगा ॥गुड़ ना दे पर गुड़ की सी बात तो कहो … Continue reading डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

समता “अरुणा’

दादी मां 🌸 (#संस्मरण) दादी मां की महायात्रा की तैयारी जोर- शोर से चल रही थी । फूल, बताशे ,गुब्बारे सब कुछ लाया जा रहा था। पापा के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। मम्मी भी फटी आंखों से अपनी सहचरी को देखे जा रही थी ,जो कभी बुजुर्ग की भूमिका निभाती तो कभी सहेली … Continue reading समता “अरुणा’

समता “अरुणा”

प्याऊ#संस्मरण"मम्मी,बहुत प्यास लगी है।' मेरी बेटी ने मुझसे बोतल मांगते हुए कहा । बोतल में पानी नहीं था । मैंने बस से पानी के लिए इधर- उधर देखा पानी का दूर-दूर तक कोई अता पता ना था। मैं कभी खाली बोतल को कभी अपनी प्यासी बेटी को देख रही थी। आज मुझे अपने छोटे दादा … Continue reading समता “अरुणा”

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

आज मैं,यादों की गुल्लक लिएबैठी हूँ अरमान लिएखोलकर निकाल लूँ सबयारहने दूँ?अभी और सहेज लूँ इसमें अनगिनत पल खुशियों के!नहीं….उत्साहित हूँ, उत्सुक हूँ….अब तक जो जमा किया…..देख लूँ जल्दी से!बस अब नहीं रहा जा रहा…और ….खुलते ही अंबार लग गया…पंजी,दस्सी,चवन्नी,अठन्नी और अभी डाले कुछ एक,दो के और दस -पाँच रुपये के सिक्कों का!पर….पंजी,दस्सी,चवन्नी और अठन्नी … Continue reading चंचल हरेंद्र वशिष्ट

डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

पहला लॉक डाउन लॉक डाउन की शुरुआत कुछ यू हुई ….हमारे यहाँ किराये पर रह रहे अग्रवाल साहब का आठ लोगों का बड़ा सा परिवार । एक ही घऱ मेंं रहने के कारण कहे या रहन सहन एक , एक ही जाती कहूँ याअधिक उचित होगा अग्रवाल साहब और उनकी पत्नी यानी अम्मा और बाबूजी … Continue reading डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

#रीतु प्रज्ञा

संस्मरण खुशी के खातिर होली शब्द सुनते ही मेरा मन मोर बन नाच उठता है।पैर थिरकने लगता है।पायल की छम-छम में होली के मस्त स्वर गु़ंजित होने लगते हैं।मैं ससुराल में हूं। यहां होली सबको पसंद नहीं है। बहुत वर्षों से दूसरों को रंग और गुलाल लगाने के लिए तरस रही थी।बहन का फोन आया … Continue reading #रीतु प्रज्ञा

यादो का झरोखा

★★★ सुनील दत्त मिश्रा ★★★कैसे लिखूं क्या  लिखूं  आज जिस महान शख्सियत के बारे में लिख रहा हूँ, वह भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी  के बारे मे, जबलपुर से कटनी  सड़क पर  मेरा तत्कालीन ड्राइवर इब्राहिम बड़ी जोर से चिल्लाया, अटलबिहारी बाजपेयी जी की कार रही है, उसने अपना … Continue reading यादो का झरोखा