अकेला की कविताएं

---- #अरविन्दअकेलाकविता   भैया दूज का पावन त्योहार आ गया सावन का मनभावन,भैया दूज का पावन त्योहार,बहना भैया को राखी बाँधती,भैया देता आशीष हजार।       आ गया सावन का...। साल में एकदिन यह पर्व आता,सबके दिल पर छाप छोड़ जाता,इस दिन तो ईश्वर भी खुश होते,देखकर भाई-बहन का प्यार।       आ गया सावन का...। राखी महज धागा … Continue reading अकेला की कविताएं

जाने क्यों डरता हूं उससे

--- अरविन्द अकेलाजाने क्यों डरता हूँ उससे,नित्य दिन हर बार,कोई दिन ऐसा नहीं होता,जब होता न हो तकरार। मेरे घर की भूकम्प है वह,झटके देती हर बार,बहुत बड़ी तबाही लाती,करती घर को तार तार। जब कभी घर लेट जाता,करती वह सवाल हजार,नाक पर वह गुस्सा रखती,पर दिल से करती वह प्यार।       ----0---    ------अरविन्द अकेला       रामकृष्ण … Continue reading जाने क्यों डरता हूं उससे

मुनिया

लघुकथा---- अरविन्द अकेला      अरे बेटा रामू, जाकर के देखो तो मुनिया के दरवाजे पर इतनी भीड़ क्यों लगी है कौन आया है, कहाँ से आया है और किसलिए आया है। जा करके देख जरा और पता लगाकर हमें बता। इतना कहकर कमला चाची अपने घर नहाने के लिए चली गयी।     रामू जाकर देखता है कि … Continue reading मुनिया

जिधर जवानी चलती है

---- अरविन्द अकेलाजिधर जवानी चलती है,उधर जमाना चलता है,देखती एकटक उसे दुनियाँ,दुश्मन देखकर जलता है। जब जवानी लेती अंगड़ाई,इतिहास बनता बिगड़ता है,कोई देखकर आश्चर्य करता ,कोई अपने हाथों को  मलता है । कोई जवानी में बनता है,कोई खुब बिगड़ता है,जिसने सँवारी जवानी अपनी,वह अलग इतिहास रचता है। आती जवानी हवा की झोंको सी,लाती क्रांति यह … Continue reading जिधर जवानी चलती है

लापरवाही

---अरविन्द अकेलालॉकडाउन समाप्ति के बाद 40 वर्षीय जमील अहमद खुलेआम बिना मास्क पहने व सोशल डिस्टेन्ससिग का पालन किये बिना विगत एक माह से इधर उधर घुम रहा था कि जाने अनजाने किसी कोरोना पॉजिटिव के सम्पर्क में आने के कारण उसमें सर्दी, खाँसीं बुखार व श्वांस लेने में तकलीफ के लक्षण आने लगे थे।देखते … Continue reading लापरवाही

मोरे पिया नहीं आए

---- अरविन्द अकेलादिन महीने बीत गये,बीत गये मेरे दो साल,रास्ता उनका देख देख,यहाँ बुरा है मेरा हालकिससे कहूँ बातें दिल की,कोई समझ नहीं पाये,।मोरे पिया नहीं आये। बीत गये दो फागुन सावन,नहीं आये मोरे मनभावन,सुनी हो गयी मेरी जिन्दगी,नहीं आये मेरे पतित पावन,कड़क रही बिजली जोर से,उमड़ उमड़ कर बदरा छाये,मोरे पिया नहीं आये। दिन … Continue reading मोरे पिया नहीं आए

कुत्तों का बॉस

      लघुकथा--- अरविन्द अकेला        प्रदेश के एक मंत्री सुबह-सुबह अपने दो रौबदार कुत्ते व अपने   पी ए के साथ टहल रहे थे तभी एक कवि महोदय की नजर मंत्री जी के साथ दो रौबदर व खतरनाक कुत्तों पर पड़ी। कवि जी यह देखकर ठिठक गए और मन हीं सोचने लगे कि एक तो ये प्रदेश … Continue reading कुत्तों का बॉस

चाहिए(हास्य-व्यंग्य)

---- अरविन्द अकेलाकाली नहीं, कलुटी  नहीं,मोटी नहीं, नाटी नहीं ,हमको तो रुपवती गुणवती,एक श्रीमती चाहिये। ससुर मेरा धनवान,सास मेरी गुणवान,शाला की कोई चाह नहीं,पर शाली दो चार चाहिये। रुपया नहीं,पैसा नहीं,धन नहीं,दौलत नहीं,हमको तो टीवी,फ्रीज,गोदरेज,और एक मोटरकार चाहिये। गर कोई ऐसा परिवार मिले,पत्नी का प्यार मिले,शीध्र हीं मुझे,उसका पत्ता बतलाईये। बताने वाले को उचित कमीशन,इज्जत … Continue reading चाहिए(हास्य-व्यंग्य)

जाने क्यों वह अच्छी लगती

--- अरविन्द अकेलाजाने क्यों वह अच्छी लगती,अच्छे उसके बात विचार,मन खींचा-खींचा सा जाता,कहीं यह तो नहीं कोई प्यार। रूप गुण से वह है सुन्दर,अद्भूत हैं उसके साज शृंगार,नयनों में मादकता उसकी,मुख से बहती रस की धार। आती हवा की झोंको सी वह,मेरे दिल में करती प्रेम संचार,उसकी सुध-बुध में खो बैठा,अपना यह मेरा घर परिवार। … Continue reading जाने क्यों वह अच्छी लगती

ग़ज़ल

--- अरविन्द अकेलाछुप छुप कर देखना,कोई अच्छी बात नहीं, आमने सामने से देखो,तो कोई बात बने। तेरा दूर-दूर रहना,कोई अच्छी बात नहीं,गर रहो तुम पास-पास,तो कोई बात बने। दूर से नजरों का तीर चलाना,अच्छी बात नहीं,सामने से तीर चलाओ,तो कोई बात बने। मेमनों का शिकार किया करते हैं सभी,कभी शेर का शिकार करो,तो कोई बात … Continue reading ग़ज़ल