भाई दूज

◆◆◆राजेश पान्डेय वत्स◆◆◆
प्रेम है अनंत उसे, नेह रखे वह जिसे,
उर में बसाके जहाँ,
*प्रीत की उँचाई है!!*

मन धन सब हारे, गंगा तन मुख प्यारे,
गोदी में ही अनुराग,
*नींद भी चुराई है!!*

मुख चूमें पीठ घूमे, दिल हिल जग झूमें,
थप – थप पग ले के,
*ठुमकत आई है!!*

सुभद्रा है खुद बनी, प्रफुल्लित छवि धनी,
हँसकर वह मुझे,
*गोविन्द बताई है!!*

–राजेश पान्डेय वत्स!!

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