नानी बाई को मायरो

◆◆ डॉ. कवि कुमार निर्मल ◆◆
*छ सौ साल पहले जूनागढ़, गुजरात में नरसी का जन्म हुआ।  वे हुमायूं के शासनकाल के दिन थे। ये जन्म से ही गूंगे-बहरे थे और अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई और कड़क मिजाज की भाभी भी थी। एक संत की कृपा हुई और नरसी बोलने लगे, साथहीं सुनने भी लगे।*
*इनके माता-पिता गांव की एक महामारी में मर गये। इनका विवाह हुआ फर छोटी उम्र में भार्या चल बसी। दूसरा विवाह तो लड़की हुई जिसका नाम रखा नानीबाई। बेटी का विवाह अंजार नगर में हुआ। इधर नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया। नरसी कृष्णभक्त थे साथहीं भोलेबाबा कृपा से ठाकुर जी के दर्शन हुए और वे सांसारिक मोह त्याग संत बने। नानीबाई ने पुत्री हुई और बड़ी हुई पर संत नरसी को इसकी खबर नहीं थी। विवाह पर भात भरने हेतु नरसी को सूचना मिली। नरसी तो फक्कड़ थे और भाई-पटिदारों से सहायता नहीं मिली तब वे टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर निकले भात भरने।*
*भगवान् साक्षात परचा दे बेड़ा पार किए और शान के साथ भात खुद भरे संत के हाथों। लौटानी एक लड़की बोली, “सबको दीये पर मुझे कुछ न दिया संत तो सोने-चाँदी की बरखा हुई प्रभुकृपा से।*

*(यह मारवाड़ी भाषा में फिल्मा जब रिलीज हुई तो सारे भारत के हाउस फुल! चैरिटी हेतु हमने लिबर्टी में तीन दिन में यथेष्ट जमा कर जरुरतमंदों में खरीदी साम्रगियाँ बाँटी बेतिया के आस पास के गाँवों में। तब मैं के. आर. हाई स्कुल में पढ़ता था और सोफा क्लास की टिकट चेकर बना।)*

*डॉ. कवि कुमार निर्मल*
*बेतिया, बिहार*

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