त्याग(दोहा)

                 — केवरा यदु “मीरा “
त्याग महल को चल दिये,वन को श्री रघुनाथ ।
रोते नर नारी  अवध,हम तो हुए अनाथ।।

त्याग मूर्ति सीता चली,अपने पिय के साथ।
अर्ध अंगिनी बन रही,थाम राम का हाथ ।।

चरण पादुका शीश धर,भरत रहे चितलाय।
त्याग अवध सुख भोग को,चौदह वर्ष बिताय।।

त्याग उर्मिला का सुनो,करी नींद परित्याग ।
खड़ी द्वार चौदह बरस,प्रियतम पद अनुराग ।।

त्याग समर्पण साथ ले,चलती हरपल नार।
ममता आँचल में लिये,चला रही संसार ।।

रोटी सबको दे खिला,पी लेती माँ  नीर।
भूख नहीं है आज कह,सह जाती माँ पीर ।।

रखती है नौ माह तक, तुझे रक्त से सींच।
जन्मा जब तू लाल कह,रखती ह्रद  से भींच।।

त्याग तपस्या के बिना, जीवन है बेकार।
भूखे को रोटी खिला, चलो बाँट  लें प्यार।।

केवरा यदु “मीरा “
राजिम

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