दोहे

—- भारत भूषण वर्मा
(1)
मर्यादित नारी सदा ,
करे पाप का नाश ।
घर ‘भूषण’ ऐसे बने ,
जैसे गिरि कैलाश ।।
(2)
नारी से घर स्वर्ग है ,
नारी से ही नर्क ।
‘भूषण’ ये सच सृष्टि का ,
मत कर तर्क-वितर्क ।।
(3)
नशा निशानी मौत की ,
नशा नाश का द्वार ।
जीवन-किश्ती डोलती ,
‘भूषण’ बिन पतवार ।।
(4)
‘भूषण’ आदत ज्ञान की ,
सर्व-सिद्धि अनुकूल ।
इच्छा जग-कल्याण की ,
काटे कष्ट समूल ।।
(5)
आज करूं अब मैं करूं ,
‘भूषण’ किया न काम ।
आज-अभी के फेर में ,
गुजरी उम्र तमाम ।।

—- भारत भूषण वर्मा
असंध (करनाल) हरियाणा
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)

Leave a comment