— मंगल सिंह
अपनो ने ही बदली है,
अपनेपन की परिभाषा,!!
इसीलिए अब खत्म हो रही है,
रिश्तो की आशा,!!
स्वार्थ से भर गया है,
अब यह जग सारा,!!
अब कोई नहीं दे रहा है,
किसी को सहारा,!!
करने में है सक्षम लोगों की भलाई,
फ़िर भी कर रहे हैं एक दूसरे की बुराई,!!
अपनो ने ही बदली है,
अपनेपन की परिभाषा,!!
इसीलिए अब खत्म हो रही है,
रिश्तो की आशा,!!
बदलने के लिए कहते हैं सबको,
खुद को कोई बदलॆ कौन,
बने बैठे हैं सब कोई मौन,!!
सोच रहे हैं पहल करे वो,
पर दोनों में यह करे कौन,!!
अपनो ने ही बदली है,
अपनेपन की परिभाषा,!!
इसीलिए अब खत्म हो रही है,
रिश्तो की आशा,!!
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रचनाकार:-मंगल सिंह
शहर-कानपुर देहात
राज्य-उत्तर प्रदेश
सम्पर्कसूत्र-8400285855