— भूप सिंह ‘भारती’
बढ़ती जनसंख्या अपणी या भोत बड़ी बीमारी।
दो हम एक हमारे हो या बात मानलो म्हारी।।
एक पेट म्ह एक गोद म्ह दो कांधे पै भाई,
इब तो गाड़ी डाट बावले क्यां नै लार लगाई,
कुछ तो सोच समझले, क्यूँ तेरी मत मारी।
बढ़ती जनसंख्या अपणी या भोत बड़ी बीमारी।।
खाणा पीणा रहै ना ढंग का, मिलै ना दूध मलाई,
घणे बालकां की लोगों, ना ढंग तै हुवै पढ़ाई,
कोन्या गात समाई, बालक रोवै दे किलकारी।
बढ़ती जनसंख्या अपणी, या भोत बड़ी बीमारी।।
छोटा हो परिवार तो बालक भी काचे काटै रै,
बेशक थोड़ी चीज हो, घणी आवती बांटै रै।
घणे बालक पैदा करणा, नाटै दुनियादारी।
बढ़ती जनसंख्या अपणी, या भोत बड़ी बीमारी।।
पहरण नै ना लत्ता मिलता, ना सोवण नै खाट,
ऊपर नीचै बालक होज्या, हो कुणबा बाराबाट,
नसबंदी करवालो लोगों मिटजा दुविधा सारी।
बढ़ती जनसंख्या अपणी, या भोत बड़ी बीमारी।।
जनसंख्या बढ़ने तै लोगों, बढ़ती बेरोजगारी,
भ्रष्टाचार अर शोषण बढ़ता, बात बताऊँ सारी,
कहै भारती बढ़ती जनसंख्या तै या दुनिया हारी।
बढ़ती जनसंख्या अपणी या भोत बड़ी बीमारी।।
– भूपसिंह ‘भारती’,
आदर्श नगर नारनौल, हरियाणा।