एक शाम शहीदों के नाम

    — डॉ वसुधा पु.कामत
एक शाम शहीदों के नाम,
देशवासियों, सुनो मेरा पैगाम,
कभी शहीदों की गलियों में जाकर देखना,
कभी उनकी आवाज सुनकर देखना,
कहता है हर एक शहीद,
सुन मेरी मां, आया था मैं
तेरे लाल रंग से लाल बनकर,
तेरी कोख से तेरा दीपक बनकर,
खायी थी कसम मैंने तेरी ही कोख में,
आऊंगा,मैं दुश्मनों को उडाने,
बचाऊंगा मैं मां भारती को,
उनके नापाक इरादों से,
खायी थी,तेरे खून की कसम,
चुकाऊंगा मैं ऋण तेरा,
अपना खून बहाकर,
देख आज मैं तेरा लाल,
दुश्मनों के छक्के छुडाकर,
छाती का लहू बहाकर,
किया मां भारती का तिलक,
मैंने अपने लहू से,
चुकाया हैं आज कर्ज मैंने,
दोनों माताओं का,
अब सुकून की नींद सोऊंगा,
तेरी ही कोख में,
हे! मां भारती गर्व हैं मुझे,
तेरे लाल बनने का।

।।वंदे मातरम्!
वंदे मातरम्!।।

डॉ वसुधा पु.कामत, बैलहोंगल, कर्नाटक

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