प्रकृति रानी स्वर्ण सुंदरी बन आई

◆◆◆नीलम व्यास◆◆◆
वो उगता सवेरा कुछ कह रहा,
सुदूर गगन बाल रवि उग रहा।

प्राची में लालिमा छाई केसरिया,
पीला सा रवि जल में चमक रहा।

स्वच्छ पारदर्शी दर्पण प्रतिबिम्ब,
उज्ज्वल जल में चमके बिम्ब।

पहाड़ पीछे छुपा सूरज मुस्काय,
जल बिच छब देख वोतोहरसाय।

स्वर्णिम सुनहली आभा बिखरी है
प्रकृति रश्मिल सौंदर्य से सँवरी है।

नव ओज तेज से प्रदीप्त करो रवि
दिन प्रारम्भ शुभ मंगल चाहे कवि।

चितरंजन मनोहर दृश्य अद्धभुत है
सौम्य सुरभित नभ छब अप्रतिमहै

ओ जग नियंता पवित्र परिवेश धरे,
उदित पावन भाव मन मे निज करे

पीत वसन ओढ़ हेमकुम्भ भर लाई
प्रकृति रानी स्वर्ण सुंदरी बन आई।

स्वरचित
श्रीमती नीलम व्यास

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