अब बुढ़िया भी यहाँ जवान लगती

●●● अरविन्द अकेला ●●●
वाह ,क्या जमाना आ गया है,
अब बुढ़िया भी यहाँ जवान लगती है ,
लेती वह अब अच्छी खासी खुराक,
वह तंदुरुस्त व पहलवान   लगती है।

पहले की तरह सिर्फ साड़ी नहीं पहनती,
जींस,स्कर्ट,सलवार पहनती है,
वह नहीं रही पहले सी परम्परागत,
अब वह पश्चिमी सभ्यता में ढलती है।

अब वह भी करती सोलह शृंगार,
इस उम्र में भी कितनों को मात करती है,
उसे कभी नहीं कहो  बुढ़िया,
वर्ना हमला,प्रतिघात  करती है।

जाती वह शापिंग माल बिग बाजार,
फैशन वह हजार करती हैं,
आज भी हैं उसके हुस्न के कई दीवाने,
इस उम्र में भी आँखें दो चार करती हैं।
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               अरविन्द अकेला

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