किसान की व्यथा कथा

【 राजेश तिवारी “मक्खन” 】
आसमान से ओले आते देख आख भर आयी ।
बने विधाता बाम कृषक  ने कैसी किस्मत पायी ।।

कर परिश्रम्य असीम खेत में बीज कृषक ने बोया ।
चाय हो गया श्याम घाम से रात नींद अति सोया ।।
जमा बीज जब देख रेख हुआ हृदय हरषायी  ।।-.–.–.–.–.–.-१

नींद गुडाई करी कुटुम्ब संग ,सीच सीच  श्रम भारी ।
किया कलेऊ बैठ कदम्ब तर ,जल  भर लायी नारी।।
किया हास परिहास विगत श्रम , हाथ कुदाल उठायी ।।-.–.–.–.–.–.-२

लगा के बारी कर रखवारी बीत विभावरी जाती   ।
रोज रोज और नील गाय के कारन नीद न आती   ।।
मेङन मेङन करत रतजगा , गावत फाग दिवायी ।।-.–.–.–.–.–.–.-३

खेत लहलहा देख कृषक तब मन में है हरषाता  ।
बरष जाहि में ब्याह बिटू को लगता करत विधाता ।।
कंगन कर्ज में रखे कबैके , अबके लेहु उठायी   ।।-.–.–.–.–.–.–.–.–.-४

घटा घिरी घनघोर  चहु दिश गया हृदय घबरायी ।
सोचा क्या क्या आज परभू जी  कैसी विपदा आयी ।।
दौङा दौङा गया खेत पर गिरा भूमि  भररायी ।।-.–.–.–.–.–.–५

आसमान से ओले आते देख आख भर आयी ।ओ
फसल नष्ट सी देख दुर्दशा  हारा हिम्मत भायी ।।
चढ बबूल पर वाही दिन को फासी गले लगायी ।।-.–.–.६

प्यारे ऐसा न करते तुम , मेहनत मजदूरी करते ।
पीले हाथ अपनी बिटिया के, सम्मेलन में करते ।।
सोची समझी नहीं सजन ने , आफद द ई बङायी ।।
बने विधाता बाम कृषक ने,कैसी किस्मत पायी ।।…….॥॥.७

राजेश तिवारी “मक्खन”
झांसी उ.प्र.

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