#रीतु प्रज्ञा

संस्मरण

खुशी के खातिर

होली शब्द सुनते ही मेरा मन मोर बन नाच उठता है।पैर थिरकने लगता है।पायल की छम-छम में होली के मस्त स्वर गु़ंजित होने लगते हैं।मैं ससुराल में हूं। यहां होली सबको पसंद नहीं है। बहुत वर्षों से दूसरों को रंग और गुलाल लगाने के लिए तरस रही थी।बहन का फोन आया कि दीदी मैं आ रही हूं। होली खेलने के लिए तैयार रहो,वो भी मेरे अलावा सुखियों के साथ भी।मैं सोच में पड़ गयी कि यह कैसे संभव होगा‌।एक दिन बाद बहन आयी।सवेरे-सवेरे फोन की।वह बोली कि दीदी आओ और संग में 250 रूपये भी लेते आना।होली मिलन आयोजन के लिए संघ के प्रमुख को देना है ।मैं बोली कि पैसा देकर मैं होली नहीं खेलूंगी।बहन मनाने लगी कि दीदी आओ यहां,बहुत मजा आएगा।रूपये की मोह मत देखो‌। अपनी खुशी की भी सोचो। नाचेंगे, गाएंगे , धमाल मचा जमकर खाएंगे।यह सब सुनकर मन पंछी बन उड़ने को व्याकुल हो गया। मैं बहन को आने की हामी भरी।होली मिलन कार्यक्रम 2 बजे से था। मैं विद्यालय से भी छुट्टी ले ली।मैं सवेरे से सब गृहकार्य निपटा चलने के लिए तैयार हुई।साथ बारह वर्ष की बेटी भी साथ हो गयी।मैं खुशियों से सराबोर हो होली मिलन कार्यक्रम स्थल पर पहुंची।सभी सखी जोरदार स्वागत की।संयोजिका को रूपया देकर रजिस्टर पर नाम लिखी।बहन की आंखें मुझे देखकर चमक उठी। हमलोग सखियों संग बहुत मस्ती किए।सबके साथ मैथिली लोकगीत पर नाचे।मनोरमा सखी की नृत्य की अदायगी मनमोहक था।अभी भी आंखों के सामने है।मैं भी बेबी सखी को इंगित करते हुए एक स्वरचित मैथिली फगुआ गीत गायी।गीत का बोल है”नहि रूसू हे बहिना ,तोहे पिया मिलन करा देब हे।’ सभी सखियों को बहुत अच्छा लगा।मुझे भी गाकर बहुत आनंद की अनुभूति हुई।अन्य सखियां भी फगुआ के मस्त गीत गायी।सभी खुशियों के रंगों के वर्षा में झूम-झूम भींग रहे थे। बहुत मजा आ रहा था।यह सब सखी बहिनपा के फेसबुक पर लाइव हो रहा था।सभी सखियों एवं बहन को रंग-बिरंगी गुलाल लगाकर असीम आनन्द की अनुभूति हुई। मुझे भी सभी सखियों ने प्रेम से गुलाल लगायी।पीले, गुलाबी,नीले अबीर लगे मेरे गाल अद्भुत छटा बिखेर रहे थे। मैं इस अविस्मरणीय पल को सदा के लिए अपनी मुट्ठी में बंद कर ली।सबके साथ मीट,चावल,पुआ ,सब्जी खाकर मन गदगद हो गया।सब रंगों की बौछार करते हुए वहां से विदा हुई। रंगों की मस्ती में रुपये की मोह भी भूल गयी।बेटी को भी बहुत मजा आया। वर्षों बाद बहन एवं सखियों संग होली खेलकर अविस्मरणीय,अनमोल क्षण रहा।ऐसी ही होली मेरे जीवन में प्रत्येक वर्ष आए।यही कामना है।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
स्वरचित एवं अप्रकाशित

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