साधना मिश्रा विंध्य

मां का आंचल
मुक्तक

आंचल में आकर छुपी
जब भी मानी हार।
दे दुलार उत्साह को
भरदे मां का प्यार।।

रोती आंखों में सजे
जुगनू सा प्रकाश।
जब मां आंचल प्यार का
मुख पर देती डाल।।

आंचल मां का जब छिना
सुना सब संसार।
रिश्ते खारे लग रहे
जैसे हो अंगार।।

मां के आंचल की समता
कर ना सके संसार।
जीती हारी बाजी का
मां न करे व्यापार।।

मां का आंचल मौन से
समझे मौन की बात।
कभी दृश्य कभी अदृश्य
रहे सदा ही साथ।।

साधना मिश्रा विंध्य

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