विषय -धड़कन
शीर्षक-नारी और धड़कन
दिल की धड़कन बढ़ जाती है
जब सफर अकेले करती हूं।
देख बेचारी नारी की
मन ही मन में डरती हूं।
मर्यादा के आंचल को
जान मैं अपनी कहती हूं।
अंधेरी रातों में
बाहर जाने से डरती हूं।
धड़कन बढ़ती रहती है
सुकून को खोजा करती हूं।
पिता पति कभी बेटे के
संग में ही सफर करती हूं।
जो कभी अकेले घर में रहूं
सोच में डूबी रहती हूं।
देर हुई तो खिड़की छत
पर आंखें गड़ाए रहती हूं।
जहां तलक भी जाए नजर
वही निहारा करती हूं।
फिक्र में चहलकदमी
पूरे घर में करती हूं।
ईश्वर से प्रार्थना में
धड़कने बढ़ाती रहती हूं।
मन्नतो की हजार
बातें सोचा करती हूं।
मगर कभी अकेले जो मैं
देर तक बाहर होती हूं।
तानों से भरी पति पिता
कभी पुत्र की बातें सुनती हूं।
सभी कड़े शब्दों में हिदायत देते हैं मेरी कोई बात भला फिर कहां वह सुनते हैं।
सुना नहीं किसी ने जो
मुझे कहना था।
एक बेटी जो अकेली डर रही थी
घर आने से पहले घर उसे छोड़ कर आई थी।।
इसीलिए मैं खुद घर देर से पहुंच
पाई थी।।
साधना मिश्रा विंध्य
लखनऊ उत्तर प्रदेश