नीलम व्यास स्वयमसिद्धा

औरत की त्रासदी

कुछ मर्दों को औरत
भोगने ,,मन बहलाने को चाहिए
रूहानी,,प्रेम के लिए नहीं
हाड़ माँस की पुतली
जो हद में रहे

डरी सहमी ,मर्द की एक आववाज पर काँपे,,, जी हुजूरी करें।
मूँछो पर ताव देता मर्द
खुदा समझे खुद को।
कुछ मर्दो को औरत
प्यारी लगे,, प्रेम के लिए जरूरी
मगर औरत की इच्छा का कोई
मान नहीं करते
थोपते खुद को उस पर
पढ़ी लिखी औरत की
इज्जत नहीं,,

न ही कदर उसके विचारों की
वैचारिक,,समकक्ष नहीं गिनते।
पुरुषों का अहम,,गरूर
औरत को ,,ऊँचा उठता
खुद से ज्यादा कमाता
सहन नहीं कर पाता
कुछ को औरत की देह से प्रेम
बस,,इच्छा पूर्ति की और
मुँह फेरकर सो दिए।

औरत की चाह,,पसन्द,,
विचार ,,मायने नहीं रखते।
औरत चाहिए खाली जगह भरने
को ,बस,,भूख मिटाने को
हवस पूरी करने को
घर बसाने को
बच्चे पैदा करने को,,,बस।

कुछ को पत्नी,,सजी सँवरी
गुड़िया सी चाहिए ,,बस
घर की शान ओ शौकत
बढ़ाने को,,अक्सर।
सब सुविधा देकर

मानो,,एहसास कराते हो
कि ,,औकात से बढ़कर दिया
झुक कर,,रहो,, जियो।

कुछ मर्दों को औरत चाहिए
मन बहलाने,,समय बिताने को
नित नई प्रेमिका चाहिए
देह तृप्ति के लिए
नित नवीन,,टेस्ट की कन्या
भोग के लिए,,मनोरंजन के लिए।

वही औरत,,बहन ,,बेटी जब
हक की आवाज उठाती है
भाई०पिता,प्रेमी,,पति
खफ़ा हो जाते है
बदचलन,,संस्कार हीन
बाद तमीज कहते हैं,, क्यों
दबने व झुकने वाली ही सच्ची औरत,,बाकी,, चरित्रहीन
कहलाती,,क्यों,,,,?

प्रेमिका चाहिए,,हाँ में हाँ मिलाने वाली,,,हक की,,न्याय की
बात करना,,गुनाह,,क्यों।
समान शिक्षा,, समान वेतन
समान जिम्मेदारी,, समान कर्त्तव्य पालन,,फिर भी
पढ़ी लिखी,,कमाऊ औरत
झुके ,,तो ही भली लगे।
विचार अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता नहीं ,,स्वीकार्य,,क्यों

उच्च वर्गों में भी
कमोबेश यही हालात
कही घरेलू हिंसा
कही पति का वर्चस्व,
अधिकांश ,,जगह
यही हालात,, क्यों
चिंतन ,,मनन करें।
सोच को सुधारें।

नीलम व्यास स्वयमसिद्धा

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