दिनेंद्र दास

कहानी
कोरोना मंदिर क्षितिज पर सूरज की लालिमा बिखर रही थी । प्रातः काल का सुनहरा दृश्य, ठंडी हवा चल रही थी।मैं मॉर्निंग वॉक करता हुआ सड़क पर चल रहा था। सड़क के किनारे बोर्ड में कुछ लिखा देखा। मुझे कम समझ आया। मैंने चश्मा लगा कर पुनः देखा कि कहीं मेरी आंखें गलत तो नहीं पढ़ लिया...! नहीं... नहीं...मैंने बिल्कुल सही पढ़ा। कोरोना देवी मंदिर। मैंने अपना माथा पकड़ लिया। एक ओर दुनिया भर में समूचा चिकित्सा विज्ञान कोरोना महामारी से निजात पाने के लिए नये-नये अनुसंधान कर रहे हैं और तमाम चिकित्सा विशेषज्ञ कोरोना वायरस की बदलती प्रकृति को समझने के लिए माथापच्ची कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का विश्वास अंधविश्वास पर ही ज्यादा विश्वास कर रहे हैं। मैं मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचा तो देखा वहां पर लंबी लाइन लगी हुई थी। मैं कुतूहल वश लाइन में खड़े लोगों से पूछा- "भैया ! लाइन में आप लोग क्यों खड़े हैं?" लोगों ने कहा - "हम सब कोरोना देवी के भक्त हैं। देवी के दर्शन के लिए लाइन लगाए हैं। आप भी लाइन में लग जाइए। कोरोना दर्शनार्थ मुक्ति:। नहीं तो...!" "नहीं तो क्या...?" "नहीं तो दिन भर में भी आप देवी के दर्शन नहीं कर पाओगे।भीड़ हो जाएगी। देवी का दर्शन दुर्लभ हो जाएगा। देवी के दर्शन मात्र से सुख शांति मिलती है।" मैं भी चुपचाप पीछे लाइन में खड़ा हो गया। भीड़ में से कोई कह रहा था,कोरोना मेरे परिवार को परेशान न करें इसलिए यहां लाइन लगाया हूं ।कोई कह रहा था प्यास नहीं लगती तो पानी कौन पीता, भूख नहीं लगती तो भोजन कौन करता, यदि रोग नहीं होता तो दवाई कौन खाता। हमारे परिवार में कोरोना ने तहलका मचा दिया है इसलिए देवी मां से विनती करने आया हूं कि देवी वहां से वापस आ जाए। यहां तक लोग कह रहे थे दुश्मनों के घर में जाए और उनके घर भर को उठा ले। पर हमारे घर ना आए, यही सोचकर मैं यहां देवी मां से प्रार्थना करने आया हूं । दूसरे देवी के मंदिर में नारियल, अगरबत्ती, चुनरी और सोलह श्रृंगार चढ़ती है। पर कोरोना देवी के मंदिर में तो माक्स, सैनिटाइजर, पीपीटी किट एवं रुपए चढ़ते हैं।

देवी मां एक बार प्रसन्न हो गई तो जानो उनके घर में कोरोना नहीं जाएगी उनके परिवार को कोरोना देवी परेशान नहीं करेगी बल्कि उनके घर में सुख शांति प्रदान करेगी।लोगों की बातें सुनते-सुनते मैं मंदिर के बरामदा तक पहुंच गया। वहां मैंने बड़ी तोंद वाले, जनेऊ धारी, लंबी चोटी धारी, मस्तक पर तिलक एवं धोती पहने हुए व्यक्ति को देखा । शायद वे मंदिर के पुजारी थे। मैंने उनसे कहा-” पुजारी जी! दुर्गा देवी, काली देवी, वैष्णव देवी, मीनाक्षी देवी, मनसा देवी, बमलेश्वरी देवी, दंतेश्वरी देवी, शीतला देवी आदि के मंदिर तो देखा और सुना है पर कोरोना देवी…! ये कोरोना देवी कहां से टपक पड़ी।”
पुजारी जी हंसते हुए मुझसे कहे-” ये कोविड-19 नंबर की नई देवी है न!”
मैंने कहा- ” नया मकान बनते,नई दुकान खुलते,नई फैक्ट्री डालते और नए धंधे चलते हैं पर ये नई देवी का अवतरण …! मेरे समझ में नहीं आता।”
पुजारी ने कहा- “क्यों नहीं आज से 75 वर्ष पहले जब भारत आजाद नहीं हुआ था तब यहां उंगली में गिनती भर के मंदिर थे। परंतु आज हर गली मोहल्ले में देवी-देवता विराजमान हैं । जितने भारत में विद्यालय नहीं हैं उनसे कहीं अधिक देवी-देवताओं के मंदिर हैं । जब देश के नाम से भारत मां के मंदिर जगह -जगह बन गई है और कई प्रांत के नाम से मंदिर बनी है जैसे कि छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ महतारी का मंदिर है। भक्तों की भावना जहां प्रबल होती है, वहां मंदिर एवं मस्जिद बन जाते हैं। वही मूर्ति एवं कब्रों की पूजा शुरू हो जाती है। आप चाहे तो अपने मां, बहन और बेटी ही नहीं अपने मेहरारु के नाम पर भी मंदिर बना सकते हैं। आगरा में इसका पोख्ता उदाहरण है। शाहजहां ने बेगम मुमताज के नाम पर कब्र बनाया है जिसे लोग ताजमहल के नाम से जानते हैं। इतना ही नहीं अपने गांव के नाम पर भी देवी या देवता लगा दो और मंदिर बनाकर पूजा करो, ये धंधा भी खूब चलेगा ।
काफी देर मशक्कत के पश्चात खिसकते खिसकते मेरा भी नंबर आ गया, जहां मुझे पहुंचना था। उस मंजिल तक पहुंच गया।मैं कोरोना देवी के ठीक सामने खड़ा होकर अभिवादन किया। प्रत्युत्तर में वे भी मुझे मुस्कुराते हुए अभिवादन की। उसे देखकर मुझे हंसी आ गई। फिर देवी जी मुझसे बोली- “अरे आप भी यहां…! आपको मेरे पास आने की क्या जरूरत पड़ गई… ? आप लोग तो मुझे मानते नहीं..! मैं तो आप जैसे महात्माओं से डरती हूं। सामने नहीं फटकती हूं क्योंकि महात्मागण साफ- सफाई पर विशेष ध्यान देते हैं । टकसार का पालन करते हैं ।अंडा, मांस ,मछली एवं नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करते हैं ।जहां साफ- सफाई होती है वहां मैं नहीं रहती हूं ।जहां गंदगी होती है वहीं मेरा स्थान होता है। फिर आप लोग देवी- देवता के चक्कर में नहीं पड़ते हैं। फिर यहां कैसे?”
” मुझे आपसे कुछ प्रश्न करना है इसलिए मैं यहां तक आ गया । ये बताइए आप यहां आई क्यों हों? यहां आकर पलथी मारकर, आसन जमाकर बैठी हो और लोगों को परेशान कर रही हो। कितने लोगों का घर उजाड़ दिये कितनो की मांगे सुनी कर दी। कितने भाइयों की कलाई सुनी हो गई। कितने बुढ़ापे की लाठी को निगल गए। कितने मां की गोदें सूनी कर दी, कितनो को तड़पा- तड़पा कर मार डाला ।उसके बाद भी यहां मंदिर में देवी बनकर आराम से बैठी हुई हो । और भक्तों से पुजवा रही हो, तुम्हें शरम नहीं आती।”
“देवी मुस्कुराती हुई मुझसे बोली-” वाह महात्मा जी ,वाह… आपने खूब कहा । पर सच्चाई तो यह है हमें पूजा कराने का कोई शौक नहीं है । जहां भक्त होते हैं वही भगवान और भगवती का अवतरण होता है ।यहां के लोग भावुक हैं, अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोग भी अंधविश्वास में पड़े हैं। यहां तो किसी भी पत्थर में बंदन पोत दो और लंगोटा चढ़ा दो हनुमान जी हो गए । चुनरी चढ़ा दो देवी जी हो गई। गोल पत्थर पर बेलपत्ती, दूध आदि चढ़ा दो शिवलिंग बन गये । काला धागा ,काली चुनरी, काली चूड़ी चढ़ा दो कालीमाई बन गई। ऐसे ही यहां के भावुक भक्तों ने मुझे कोरोना देवी बना डाला है।”
मैंने कोरोना देवी से पूछा-“देवी जी ये बताइए कि भारत के अलावा और भी कहीं आपका मंदिर है ?”
“न बाबा न…! भारत के अलावा अन्य जगहों (विदेशों) में मेरी दाल नहीं गलती। वहां कोई मान- सम्मान नहीं करते बल्कि वहां तो गालियां ही देते हैं। पर यहां तो बीमारियों का सम्मान करते हैं। आपको याद दिला दूं ।कुछ दिन पहले चेचक महामारी नाम से मेरी छोटी बहन आई थी तो उस समय से आज भी कई प्रांतों में चेचक होने के कुछ दिन बाद छोटी माता अथवा चेचक माई के नाम से उसे पुकारते हैं और बड़ी विधि विधान से ढोल, झांझ और मंजीरा लेकर पूजा- पाठ करते हैं। उनके नाम से जवारा (गेहूं की फसल) बोई जाती है। इतना ही नहीं कहीं -कहीं तो उनके नाम पर बलि भी दी जाती है। यह अंधविश्वास किसी महामारी अथवा किसी देवी- देवता ने नहीं पैदा की है बल्कि भावुक भक्तों ने उनके नाम से रोजी – रोटी कमाने का धंधा बना रखा है। और देवी- देवता के आड़ में भक्त अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ।आप देख लीजिए कई प्रांतों में महिलाएं मेरे नाम के कोरोना गीत गाकर, नाच कूद कर मुझे रिझा रही हैं और लड्डू ,नारियल , चूड़ा-दही, लाइ, सत्तू, चुनरी चढ़ा रही हैं।अब आप ही बताइए महाराज जी ! इसमें मेरा क्या कसूर है।”
मैंने कहा-“आप सही कहती हो जब तक इस दुनिया में अज्ञानी, अंधविश्वासी, नासमझ एवं पाखंडी लोग रहेंगे। प्रकृति के कारण कार्य व्यवस्था, विश्व के शाश्वत नियम को नहीं समझेंगे। अपने से अलग ईश्वर देवी- देवता परमात्मा को मानकर पूजते रहेंगे तब तक नए-नए देवी-देवताओ के अवतरण होते रहेंगे। आप जैसी देवी जिंदा रहेंगी। सत्य ज्ञान, सत्य वाणी, सत्य रहनी एवं सत्य सिद्धांत को अपनाकर ही अपनी मंजिल आत्म स्थिति में पहुंचा जा सकता है अन्यथा लोग भटकते ही रहेंगे।”
(यह मेरी अप्रकाशित कहानी है) लेखक

दिनेंद्र दास
कबीर आश्रम करहीभदर
अध्यक्ष मधुर साहित्य परिषद् तहसील इकाई बालोद, जिला- बालोद (छत्तीसगढ़)
मो. नं. 85648 86665

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