ओम प्रकाश खरे

०००० * ग़ज़ल * ००००

चरागों ने अंधेरे हर मिटा देने की ठानी है।
अंधेरे दूर करना ही रही इनकी कहानी है।।

सदा दिन-रात जलते काम ये अपना किया करते,
रहे धुन के सदा पक्के बड़ी आदत पुरानी है।

जो सच्चे लोग होते हैं सदा निज काम हैं करते,
हमेशा काम से ही बन गई उनकी निशानी है ।

सभी के काम की होती रही पूजा सदा से ही,
सिखाए रास्ते जिसने उन्हीं की मेहरबानी है ।

उजाले में रहो कोशिश करो जग में उज़ाला हो,
कबीरा,सूर्, तुलसी की मधुर अनमोल बानी है।

हमारे वंशजों ने ही डगर हमको दिखाई है,
उसी पर चल रहे हैं हम यही अपनी कहानी है।

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ओम प्रकाश खरे © जौनपुर।
२७/०६/२०२१
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