अरविन्द अकेला

रक्षा का बंधन ------------------------- कोरोनाकाल में रक्षाबंधन के दिन अपनी बड़ी बहन नेहा दीदी के नहीं आने से अनिल काफी दुखित एवं चिंतित था।अनिल अंदर हीं अंदर नेहा दीदी के नहीं आने के गम में रो रहा था। अनिल को चिंतित देखकर उसकी माँ कंचन देवी ने कहा कि

अच्छे बच्चे छोटी-छोटी बातों के लिये चिंतित एवं दुखित नहीं रहते हैं और नहीं रोया करते हैं।बेटा देखो, दीदी नहीं आयी तो क्या हुआ,
उसका राखी तो आ गया है ।
माँ-बेटे कि बात चल हीं रही थी कि तभी पड़ोस की एक लड़की रेखा राखी लेकर अनिल को राखी बाँधने के लिये आयी।अनिल को देखते हीं बोली कि भैया आप नेहा दीदी के नहीं आने से इतना उदास क्यों हैं।दीदी बहुत दूर रहती हैं। इस कोरोनाकाल में वह इतनी दूर से नहीं आ सकती हैं। मैं भी तो आपकी छोटी बहन की तरह हूँ। क्या मैं आपको राखी नहीं बांध सकती हूँ।
रेखा की बात सुनकर
अनिल बोला हाँ बहन रेखा,राखी तो तुम बाँध हीं सकती हो। यह तुम्हारा अधिकार है। देखो,मेरी कलाई तुम्हारी राखी का इंतजार कर रही है। देर नहीं करो जल्दी से राखी बांधों।
जैसे हीं रेखा ने अनिल को राखी बांधी अनिल की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
अनिल ने रेखा के सिर पर अपना हाथ रखते हुये कहा कि बहन आज से मैं प्रण लेता हूँ कि मैं आज से तुम्हें एवं तुम्हारी जैसी लाखों लडकियों को अपनी बहन की तरह मानूँगा। तुम्हें एवं उन लडकियों की आजीवन रक्षा करूंगा।
तभी पास में हीं बैठे अशोक चाचा ने ताली बजते हुये कहा कि शाबाश बेटा “यदि समाज के सभी लड़के अनिल कि तरह रेखा जैसी लड़की को अपनी बहन मानने लगे उन्हें अपनी बहन की तरह रक्षा का बंधन देने लगे तब समाज में निर्भया जैसी घटना की पुनरावृती हीं नहीं होगी।
आशोक चाचा कि बात सुनकर सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट दिखने लगी।
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अरविन्द अकेला,पटना,बिहार

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