राकेश कुमार मिश्रा

🎊🌹दौर-ए-गजल🌹🎊

तेरा जिस्म संगेमरमर तेरा हुस्न लाजवाब
खिलते हुए कंवल सा तेरे चेहरे का शबाब ,

तेरी जुल्फ डोर रेशम तेरी आंखों में शराब
लब सुर्खो सुर्ख तेरे के जैसे पंखुड़ी गुलाब ,

सांसो की तेरी खुशबू चंदन है बेहिसाब
तुझे चूमने को पागल मौसम भी है बेताब ,

खय्याम की गजल तू शायर का कोई ख्वाब
तू चांद चौदहवीं का या के है आफताब ,

चढ़ती जवानी तेरी चढ़ता नदी में आब
‘राकेश’ जमीं पे तोहफा कुदरत का तू नायाब ,
🎊🌹राकेश कुमार मिश्रा🌹🎊

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