भास्कर सिंह माणिक

पावन बंधन रक्षाबंधन

थाल में रोली चंदन अक्षत
लेकर बहना आई।
भाई मस्तक तिलक लगाकर
मन ही मन हर्षाई।
रक्षा सूत्र को बांध कलाई
सुरक्षा का वचन लिया।
बलि जैसे बलशाली ने भी
बंधन रीत निभाई।
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रक्षाबंधन बंधे कृष्ण ने
द्रोपदी लाज बचाई।
इंद्र भार्या ने बांधी थी
राखी इंद्र कलाई।
संस्कृति सभ्यता विरासत
त्यौहार रक्षाबंधन।
हुमायूं ने कच्चे सूत की
रक्षा रीत समझाई।
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मैं घोषणा करता हूं कि यह दोनों मुक्तक मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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