अरविन्द अकेला

लघुकथा

अपने बेटे पर भी अंगुली उठाइये

गीता देवी रामपुर की एक दबंग एवं कड़क महिला थी। उसके आगे उसके पति,परिवार एवं मोहल्ले के निवासियों की एक भी नहीं चलती थी। गीता देवी अपने बड़े बेटे महेश की शादी के लिए एक सुंदर,सुशील एवं कामकाजी लड़की की तालाश कर रही थी इसके लिये वह एक से एक लड़की को छाँट चुकी थी। किसी को यह कहकर छाँट देती थी कि इसकी,नाक,कान,आँख अच्छी नहीं है तो किसी को यह कहकर कि यह गोरी,लम्बी एवं सुडौल नहीं है । देखते-देखते उसके बेटे महेश की उम्र अब 35 साल हो रही थी,जो गीता देवी की चिंता बढ़ा रही थी। गीता ने अपनी मंझली भौजाई रीता से कहा कि महेश के लिये कोई लड़की बताईये भाभी जी। रीता ने कहा कि हम अपने भाई आनन्द से बात करके देखते हैं । रीता ने अपने भाई आनन्द से कहा कि तुम्हारे नजर में महेश के लायक कोई लड़की है तो मुझे बताओ।

कुछ दिन बाद आनन्द ने अपने किसी परिचित रिश्तेदार की एक सुंदर एवं सुशील लड़की सोनिया से महेश की शादी धूमधाम से करवा दी।
महेश की शादी हो जाने के बाद गीता देवी ने अपनी भौजाई के भाई आनन्द को खुब खरी- खरी सुनायी कि लड़की बहुत दुबली-पतली है ।शादी में लड़की वाले ने झुमका नहीं दिया,बर्तन नहीं दिया।
शादी के तीन चार साल बाद जब सोनिया माँ नहीं बनी तो गीता देवी ने अपनी बड़ी बहू सोनिया पर यह संगीन आरोप लगाये कि”यह लड़की बाँझ है,माँ बनने लायक नहीं है । हम अपने बेटे महेश की दुसरी शादी करवा देंगे “।
गीता देवी द्वारा सोनिया पर संगीन आरोप लगाये जाने से आनन्द काफी दुखित एवं व्यथित हुआ।
आनन्द ने गीता देवी को समझाते हुये कहा कि आप कैसे कह सकते हैं कि सोनिया बाँझ है,माँ बनने लायक नहीं है। अपने बेटे की स्पर्म जाँच कराये बिना यह कैसे कह सकते हैं कि हम अपने बेटे महेश कि दुसरी शादी करा देंगे।
आनन्द ने गीता देवी को समझाते हुये कहा कि क्या कभी आपने अपने बेटे पर अंगुली उठाया है यदि नहीं तो अपने बेटे पर भी अंगुली उठाइये। क्या कभी आपने अपने बेटे महेश का मेडिकल टेस्ट करवाया है कि इसके स्पर्म में एक बाप बनने लायक क्षमता है या नहीं। हम आज दोनों सोनिया एवं महेश का मेडिकल टेस्ट करवाते हैं तब यह बताते हैं कि किसमें कितनी क्षमता है और किसमें नहीं है।
आनन्द ने जब दोनों का मेडिकल टेस्ट कराया तो पता चला कि लड़का महेश में ही कमी है लड़की सोनिया में कोई कमी नहीं है।
इस मेडिकल जाँच के बाद गीता देवी एवं महेश के चेहरे का रंग उतर चुका था। दोनों के मुख से एक भी शब्द नहीं निकल रहे थे।
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अरविन्द अकेला

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