दिनेंद्र दास

प्रेरक कहानी
निर्णय की कमी
समारु को जानवर पालने का शौक था। प्रारंभ में उन्होंने गाय पाल रखा था। गाय पर्याप्त मात्रा में दूध देती। घर के सभी सदस्य दूध, दही एवं घी खाते-पीते। बच्चे भी प्रसन्न रहते। समारु ने सोचा गाय तो साल में एक ही बच्चा देता है। दिनों-दिन दूध भी कम देने लगी है ।क्यों न गाय की जगह में बकरी पाल लूं। बकरी साल में दो बार मेमने देगी। एक बार में कई मेमने देगी। बकरी पाल लिए। कुछ दिन बाद विचार आया इसमें आमदनी कम है ।गधा पालना उचित रहेगा। कहीं बाहर काम ढूंढने की जरूरत नहीं है। आसपास ईट भट्ठा है वहां काम मिल जाएगा। दो-चार गधे खरीद लाया। उनसे आमदनी होती रही पर मित्रगण हमेशा गधे के मालिक कहकर पुकारते थे। तब समारु को बुरा लगाता था। उसने सोचा क्यों न गधे के मालिक कहलाने के बजाय घोड़े का मालिक कहलाऊं। गधे बेचकर घोड़े खरीद लेता हूं।घोड़े में बैठकर नदी के उस पार खेतों में जाऊंगा और घास तथा अन्न लाऊंगा। दो-चार घोड़े खरीद लिए। घोड़े के हिनहिनाने से उसे रात में नींद नहीं आती थी। फिर लगा अब मैं क्या करूं।शेखचिल्ली की तरह उनका मन चलायमान था। उनकी सनक हाथी पालने की हो गई। उन्होंने एक बार फिर जुआ खेला। एक हष्ट पुष्ट हाथी तीन लाख रुपये में खरीद लाए। गांव के सभी लोग समारु के पीठ ठोकते थे। पूरे अतराब में उनका नाम चल गया।किस का हाथी है? समारु का हाथी है… । समारु वाहवाही में फूला नहीं समाता था । परंतु हाथी स्थाई नहीं रहना चाहता था। उसे रोज टहलाना,घुमाना पड़ता था। उनके लिए अन्न, जल, घास और पत्ते की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया। उन्होंने हाथी को भी पानी का मोल बेचकर चैन की श्वांस ली।
लेखक
दिनेंद्र दास
कबीर आश्रम
करहीभदर
अध्यक्ष मधुर साहित्य परिषद् तहसील इकाई बालोद, जिला- बालोद
(छत्तीसगढ़)
मो.85648 86665

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