सावन गीत

----संतोष पाण्डेय'सरित'साजन की याद सताती है, सावन में  lपायलिया शोर मचाती है, सावन में  ll     शीतल, मंद बहे पुरबाई  l     रह - रह के आती अंगड़ाई  ll घूँघट को पौन उड़ाती है, सावन में  lसाजन की याद सताती है, सावन में  ll      खटमल चोली में घुस आते  l      रह - रह कर उपचीर … Continue reading सावन गीत

पत्थरों की बस्तियां

--- राकेश कुमार मिश्रापत्थरों की बस्तियां हैं , धड़कनेंबेजान हैंएक दूसरे के दर्द से आज सबअंजान हैं मिट गई संवेदना , खो गईइंसानियतआदमी के भेष में , घूमतेशैतान हैं बोलियों से छोड़ते हैं गोलियांये रहनुमासब ही एक दूसरे का नापतेखानदान हैं अम्मा की खटिया पिछवाड़ेको डाल दीकह रही औलाद बस दो दिन कीमेहमान हैं ये … Continue reading पत्थरों की बस्तियां

सावन का महीना तेरी यादों का मौसम

--- लक्ष्मी करियारेसावन का महीना तेरी यादों का मौसम..सच्चे इश्क और झूठे वादों का मौसम... * कोयल मोर पपीहा नाचेप्यार भरी तेरी चिठ्ठियां बाँचेअनुरागी इन शब्दों के अनुवादों का मौसम..सावन का महीना तेरी यादों का मौसम... * पवन चले सौंधी पुरवईयापकड़े बाँह मरोड़े बईयाअनकहे लफ्जो के सुखद संवादों का मौसम..सावन का महीना तेरी यादों का … Continue reading सावन का महीना तेरी यादों का मौसम

भारत रत्न तो इन्हें मिलना चाहिए

--- अंकित अंकुल यादवजिन माओ नेगोद समर्पित कर दी है इस माटी में,जिन बहनों की राखी मिल गई है करगिल की घाटी में। जिन बहनों नेदेश की खातिर मेहंदी स्वयं लुटाई है,बूढ़े बापों नेभी रोकर अर्थी स्वयं उठाई है। जो बच्चे भूखे सो जाते हैं पापा की आशा में,जिनकी नयन दृष्टि बह जाती निज पद … Continue reading भारत रत्न तो इन्हें मिलना चाहिए

मेरा देश मेरा हिंदुस्तान

---अनिल कुमार यादव "अनुराग"हाथ  जो  पत्थर  उठाते,बन  चले अंजान।देश  हित की सोच रखते,न करते अपमान। विश्व में  मिलकर सभी जो,यदि बढ़ाते मान।भानु बनकर चमक उठता, मीत! हिंदुस्तान। साथ  होकर भी  न  होते, साथ अपने भ्रात।भूल  जाते  हैं  सभी  को, भूलते   हर  बात। छोड़कर अपनी शिकायत,खुद करें आघात।नासमझ  बनकर  मुसीबत, ले  चले अज्ञात। सर्वदा    ऊंचा    तिरंगा,   … Continue reading मेरा देश मेरा हिंदुस्तान

जलद चितराम

----नीलम व्यास नीलाम्बर ,सुरमई आँचल बिखेरे।गहरे तो कही हल्के नीले है घनेरे।कही कही कालिमा सुबह सवेरे।पयोधर चले लेने धरा से सात फेरे। कही ओस बूंदों,कही तुषार लिए।कही तुहिन कण समेट खुद मेंलिएबादल राजा बनठन सँवर चल दिएउमड़ घुमड़ कर असीमता वो लिए रुई के फाहों से ,धवल ,उज्ज्वल सेसूरज की किरणों से चमकते फिरेकिसानों की … Continue reading जलद चितराम

क्या खुद को बनाने लगा आदमी

---राकेश कुमार मिश्रा किस तरफ आज जानेलगा आदमीआदमी को ही खानेलगा आदमी शोले आँखों में नफरत के,सीने में आगखून से अब नहानेलगा आदमी इस कदर* गिर गया कि अपनेमाँ-बाप परआज खंजर** चलानेलगा आदमी देखिए तो जुनूँ , रौशनीके लिएआग घर को लगानेलगा आदमी क्या बनाना था "राकेश"ने खुद को यहाँक्या खुद को बनानेलगा आदमी…✍🏼 बहुत … Continue reading क्या खुद को बनाने लगा आदमी

शिव प्रसन्न

---कवि कुमार निर्मल चित्त कभी शुष्क न होशिवत्व हेतु उद्यत होआप्लावन हेतु जल नहींपूर्ण समर्पण भाव प्रचण्ड'शिव' जल तत्व- चंद्रधारी-जल और विल्वपत्र नहींनवचक्र जागरण चाहिएछाले नहीं पैर में भक्त के,तर्पण, अर्पण एवम् समर्पणप्रसन्न हों शिव, मन हो दर्पण 🙏निर्मल🙏

वो मैडम मुझे “कश्मीर” लगी

---कंचन झारखण्डे "स्वर्णा"सो होता यूँ था किवो कक्षा में रोज जब आती थीमैं उनको देख संकुचाती थीपर फिर भी उनकी आँखों मेंकभी नहीं दिखे घृणा के फूलवो कोमल मन से मुझें कुछ कहना चाहतीपर मेरे नादान मन में अनेकोंविचार पनप जातेवो ज़रा दयालु सी लगींक्योंकि उनके तीव्र भौहमुझें किसी परवाह की लकीर लगतीवो मुझसे कभी … Continue reading वो मैडम मुझे “कश्मीर” लगी

गुरु छांटते अंधेरा

--- रीतु प्रज्ञागुरू छाँटते अँधेराकरते नव सवेराबज्ञान दीपक जलातेजीवन उमंग भर । नयी राह हैं दिखातेबुराई चिन्ह मिटातेहौसला करें बुलंदशिष्य उरतल तर। होने न देते उदासजगाते रहते आसमेहनती बनाकरतकलीफें सब हर।           वंदनीय हैं हमारेसदा बनते  सहारेकरें चरण वंदननवाए अपना सर।       रीतु प्रज्ञा   दरभंगा, बिहारस्वरचित एवं मौलिक