आंखे


दोहा
—-अनिल कुमार यादव’अनुराग’
आंखें   जैसे  झील थी, होठों  पर  मुस्कान।
उतरी  जैसे  भूमि  पर, एक   परी  अंजान।।

नज़रों  से  नज़रें  मिली, नयन हो  गए चार।
देखी जब मोहक अदा, मन में उपजा प्यार।।

दोनों  पलकें  जम  गई, पल में हुआ अधीर।
मुर्छित  होकर  गिर गया, चोट  लगी  गंभीर।।

तन खुशबूमय हो गया,दिल से निकली आह।
मदद  हेतु  जब  भी  गही, उसने  मेरी  बांह।।

हुआ घटित जो उस समय,था आँखों का खेल।
तब  से  लेकर आज  तक, हुआ  न कोई  मेल।।

अनिल कुमार यादव “अनुराग”
ग्राम – संभावा तहसील – गौरीगंज
जनपद – अमेठी(उ०प्र०)
मो०- 8795431246

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