सावन

— रीतु प्रज्ञा
सावन घन बरसो
सबका मन हुलसो
ठंडी पवन बहत
मधुर गान गाईए।

हरी चुनरी ओढती
धरा सुन्दर शोभती
प्रकृति छटा अपूर्व
खुशी से तो झुमिए।

आयी बहार वन
हर्षित पशु तन
मोर पपीहा नाचते
नयी धुन सुनिए

सभी पर्व हो पावन
लागे मन को भावन
रहतेे हम मस्ती में
पुष्प जैसा खिलिए ।
     
             रीतु प्रज्ञा
        दरभंगा, बिहार
      स्वरचित एवं मौलिक  
     09-07-2020

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