घर-घर में विद्वान(व्यंग्य रचना)

●● मास्टर भूताराम जाखल ●●
अंग अंग में समा अभिमान,
कमतर रखते हैं जो नर ज्ञान।
अपनी डफली अपना राग सुनाये,
घर-घर बैठे घर-घर में विद्वान।।

कुछ नहीं वे किसी को जानते हैं,
अपने आप को विद्वान मानते हैं।
रहो आप सभी सावचेत जनाब,
जो घर-घर में स्व को विद्वान मानते हैं।।

जो गधे को घोड़ा बताते हैं,
पराए को अपना जताते हैं।
अक्ल के अंधे भी आज-कल,
अपने आप को विद्वान बताते हैं।।

कहें कलम से कलमकार भूताराम,
घर-घर में बने विद्वानों को सलाम।
वे कुछ भी नहीं हैं अपने से जनाब,
वे तो औरों जैसे हैं यहाँ पर आम।।

स्वरचित व मौलिक रचना
रचनाकार:- मास्टर भूताराम जाखल
सांचोर,जालोर(राजस्थान)

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