★★ धनेश्वर देवांगन *“ऋषि”*★★
दीपावली की दूसरें रोज,
मित्र घर मिठाई देने गया |
घर के बाहर नव वाक्य से,
मातृसदन लिखा पाया ||
मैनें मित्र से माताजी के,
कैसे हैं,के हालचाल पूछा |
उनके चेहरे पर हवाई उड़ा,
उसको जीभर रोना आया ||
मातृसदन में माता नहीं है,
पूरा सदन विलाप रहा |
कुछ दिन बाद शहर में,
माता को वृद्धाश्रम में पाया ||
रचनाकार :—
धनेश्वर देवांगन *“ऋषि”*
व्याख्याता (गणित)
सारागॉव, पो. सारागांव,
जिला -जॉजगीर-चॉपा
(छत्तीसगढ़)
पिन -495686
✍️स्वरचित ,मौलिक रचना।