◆◆◆ भास्कर सिंह माणिक ◆◆◆
( 1)
आज सड़कों पर बेबस खड़ा है किसान।
सिर्फ चाहता अपना अधिकार सम्मान।
उचित मूल्य मिलना ही चाहिए श्रम का।
माणिक तब ही महकेगा पूरा उद्यान।
( 2)
———–
भीख नहीं अधिकार चाहता।
जीवन का आधार चाहता।
अपना हक मांग रहा किसान।
कभी नहीं आभार चाहता।
———————–
( 3)
होता किसान सबसे महान।
तुम न करना उसका अपमान।
बहाकर खूं पानी की तरह।
वह देता अन्न जीवनदान।
———–
( 4)
खेत बंजर हो गया
तो सोच लेना।
अन्नदाता अड़ गया
तो सोच लेना।
वह खून पसीने से
सींचता जमीन।
किसान अगर मर गया
तो सोच लेना।
—————-
( 5 )
सुशोभित लगता
खेत पर किसान।
करते सुरक्षा
सीमा पर जवान।
पहचान विश्व की
यही अनूठी।
यह करते निछावर
भू पर जान।
————
( 6 )
जीने दो सबको स्वाभिमान से।
मत झगड़ा करिएगा किसान से।
अधिकार न छीनों अन्नदाता के।
बात मेरी सुनिएगा ध्यान से।
———–
मैं घोषणा करता हूं कि यह मुक्तक मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच
मोबाइल नंबर- 9936505493