गुरु साई चालीसा

【नीलम व्यास।】
गुरु साई चालीसा
मात्रा भार 16

साई होत भाग्य विधाता।
देते जीवन सबके दाता ।
जोभी दुखी शरण में आता।
भव सागर से वो तर जाता

गुरु की चरण रज सकल पालो।
सच्ची भक्ति  को  ही   निभालो।
गुरु मन्तर  भगत को सिखालो।
जीवन   नैया   पार    लगालो।।

जो भी गुरु की सीख मानते।
सत पथ चलना सहज जानते।
गुरु  नाम   ले   सीना   तानते।
गुरु हीन नर को दे  लानते।।

जय जय गुरुदेव साई राम ।
आपकी भगतन बनना काम।
नित उठ पूजन न लूँ आराम।
श्रद्धा सबूरी पा अविराम।।

नौ गुरुवार उपवास करते।
केले  पीत पुष्प हैं चढ़ते।
पीले लड्डू भोगन लगते।
प्रसाद बालकों को बंटते।

द्वारिका माई निवास करे।
तेल बिन जल से दीप भरे।
जल से दीप जलते ही रहे।
साई नित सबका कष्ट हरे।

कलयुगी  रोग शोक मिटाये।
जग की पीड़ा दूर  भगाये।
रोगी के रोग  जब सताये।
साई सुमिरन खुशियां लाये

मुक्तिबोध देते हैं साई।
भावना सरल करते साई।
नीलम आराध्य है साई।
आठो याम रटन है साई।

मेरे अवगुण चित्त न धरना।
धरम करम  सुधारते रहना।
पाप कलुषता अब ना सहना।
विषय विकार वासना तजना।

ओम साई राम कल्याणी।
श्याम तुम  राघव तुम जानी।
सर्व जगत तुमको ही मानी।
परमात्मा कहते सब प्राणी।

साई चालीसा जपे,नित्य  जो सुबह शाम।
संकट सकल  निवारते ,पूरण हो सब काम ।

दोहा

नीलम व्यास।

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