एस एल सुबोध,

मानो तो दुर्गा
कर लो कबूल,
करो ना भूल,

मानो तो दुर्गा,
ना मानो तो काली,
छोड़ो कठोर प्रतिज्ञा,
मिलकर बजा लो ताली,
हिंद हिला गई पांचाली,
दुशासन माने पैरों की धूल..

हलके में लिया,
घर को घुमा दिया,
कानाफूसी का कार,
मंथरा बनी मककार,
करा गई वो तो वाचली,
सिंहासन को तो खाली,
रखे खड़ाऊ समझ चरण फुल..

खुद था बेखबर,
दे चुका था वर,
कैकई की करतूत,
छूट गया राम पूत,
हो गई हालत माली,
छूट भोजन की थाली,
वचनों में बांधकर दे गई शूल..

अच्छी रखो सूझ बूझ,
सदा सब रहो महफूज,
नारी से आपसी प्यार,
मिले समान अधिकार,
छेड़े ना कोई मवाली,
सशक्त बने बलशाली,
मामला पकड़े ना कोई तूल…

सबक महाभारत मानकर,
गीता ज्ञान को सत्य जानकर,
शास्त्रों का हम रखें ध्यान,
मनुस्मृति का भी रखे मान,
घर घर बजेगी तब ताली,
तब जाकर आएगी खुशहाली,
संयुक्त बनाओ सब रूल….

दश कंद बनकर ओ अंध,
उठा ली थी उसने जानकी,
सुबोध ने बनाया अब छंद,
ज्ञानी ने राह ली अज्ञान की,
हिंद में लगी तब से दिवाली,
लंका हुई कलंक से वो काली,
खुद को खत्म किया समूल…

एस एल सुबोध,
नावदी महेंद्रगढ़(हरियाणा)

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