डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

पहला लॉक डाउन

लॉक डाउन की शुरुआत कुछ यू हुई ….हमारे यहाँ किराये पर रह रहे अग्रवाल साहब का आठ लोगों का बड़ा सा परिवार । एक ही घऱ मेंं रहने के कारण कहे या रहन सहन एक , एक ही जाती कहूँ याअधिक उचित होगा अग्रवाल साहब और उनकी पत्नी यानी अम्मा और बाबूजी का अपनत्व भरा व्यवहार ।
हम दौनो को अपना बेटा बहु ही मानते है। और हमारे एकाकी जीवन के लिये तो ये परिवार खुशियों की बगिया जैसा था ।हाँ तो हम लॉक ड़ाउन के बारे मेंं बात कर रहे थे ।
क्या कहे उन दिनो के बारे मेंं बदलाव की बाड़ सी आ गईं । बच्चे बड़े सब जैसे कैचुली से बाहर निकल रहे थे …हम दौनो को मिला कर दस प्राणीयो का परिवार एक छत के नीचे 24 घण्टे साथ । क्या दिन थे वो भी यादें आज भी बेसाख्ता मुँह पर हँसी ले आती है ॥
बाबूजी की हिदायत खाना हम अलग नहीं बनाएंगे एक ही रसोई मेंं सब मिल कर बनाओ ।
हम दो बहुये हो गईं तीन बेटे हाजी अनुज भय्या अभी कवारे ही थे। बडे नखरे बाज़ कोई लड़की पसन्द ही नहीं आती लाट साहब को ऐसा बाबूजी का कहना था । अम्मा बाबूजी और तीन बच्चे गुनिन कियान और मेरी लाडो नेहा । मेरी उसकी बहुत पटती 10 साल की पर मेरी पक्कम पक्की दोस्त । हमेशा मुझे छोटू माँ कहती । हमारे यहाँ पर मेरे ही हाथो जन्म हुआ था उसका । मेरे बेटी नही हैएक बेटा ही है वो भी परदेस मेंं रहता है । और हम दौनो को बेटी का बड़ा चाव …उस पर भाभी काफी बिमार रहती थी । सो उनके इलाज के साथ मेंने नेहा को भी संभाला । और बस तभी से मैं बन गईं नेहा की छोटू माँ । खैर हम लॉक डाउन की बात कर रहे थे ।
सुबह 11और शाम के 7 बाजे रामायण और महा भारत आती बाबूजी का हुकुम उस समय कोई कुछ नही करेगा सब tv के आगे होंगे । एक मजे की बात बाई की छुट्टी थी वो तो आएगी नही सो काम का बंटवारा भी हुआ ।
बाबूजी यानी भीष्मपितामह की ड्यूटी लगी बाहर से दूध सब्जी फल और रसोई का सामान लाने की ॥ पुरुर्ष वर्ग की ड्यूटी लगी सफाई की झाडू , पोंछा और झाड़ पोंछ । रसोई की ड्यूटी वो तो हमारी ही लगनी थी सो लग गईं ॥ खाना और बरतन ।
11 बाजे से पहले नाश्ता ,सफाई नहाना ..घमासान मचता सब नहाने की फिराक मेंं रहते बाबूजी को बाजार जाना होता सो आखिर मेंं नहाते और 11 बज जाये तो ….हर हर गंगे …अम्मा गुस्सा करती बच्चे नहा लिये पर इनका दलिद्दर नहीं उतरा ..बाबूजी झुकि नज़रों से नाश्ता करते रहते। अम्मा कहे जाती तो कहते अरे भागवान शेरो के मुँह किसने धोये है । और जोर का ठहाका लगाते । अम्मा भी कहाँ कम थी कहती हाँ बड़े शेर है छिपकली से तो डरते है । बाबूजी गड़बड़ा जाते अब बारी अम्मा की होती हँसने की । और हम सब भी मुस्कुराहट नही रोक पाते । उसी अपने पन से भरे माहौल मेंं पता लगा अम्मा गाती बड़ा अच्छा है । बाबूजी उनके गाने पर ही फिदा हो गये थे । हम हैरान चुप चुप सी रहने वाली अम्मा कभी शास्त्रीय संगीत भी गाती थी । अम्मा ने बताया बाबूजी खाना बड़ा अच्छा बनाते है तीनों बच्चों के होने पर घऱ से दूर नौकरी थी बाबूजी ने ही सारा संभाला बच्चे भी और अम्मा को भी । कहते कहते अम्मा तो भीग ही गईं और बाबूजी भी भावुक हो गये ॥
11 बज चुके थे दौड़ लगी tv के आगे बैठने की tv पर काल चक्र घूमता और साथ हमारे यहाँ हमारी कुर्सियां घूमने लगती इधर बैठे या उधर । महाभारत बड़े ध्यान से देखा जाता पितामह यानी बाबूजी के स्पेशल कमेन्ट और उनके बोलने पर अम्मा की टोका टाकी के साथ चलती भैय्या जी की विशेष कभी अति विशेष टिप्पणी ….और हम सब की खी खी ….एक महाभारत tv पर दूसरी हमारे घर मेंं साथ साथ चलती । ये यानी ड़ा साहब कभी बाबूजी , कभी अम्मा और कभी भैय्या की हाँ मेंं हाँ मिलाते रहते । भाभी हँसती कहती बेचारे देवर जी थाली के बैंगन से हो गये है सब को ख़ुश करने के चक्कर मेंं । मैं , नेहा, गुनिन , और कियान एक दूसरे को देख कर हँसते रहते हमारी अलग ही खिचडी पकती रहती ॥ दिन का आधा युद्द महाभारत के बाद खाने की टेबल पर शुरु होता …क्या बना दिया , रोज ये ही बनाती हो नमक कम, मिर्ची ज्यादा ….लेकिन रोज षटरस भोजन बनता । बड़े दिनो बाद छुट्टियों का लुत्फ आ रहा था । आज सोचा के रात का खाना पुरूष वर्ग बनायेगा । काफी जद्दोजहद के बाद आखिर वो सब मान गये । हमारी मौज हो गईं उस दिन ।
पर जानते है रोज 8 बजे हो जाने वाला डिनर रात 11 बजे हुआ ।
मटर पनीर , दाल तड़का , सूखे आलू चटनी और रोटी ….पसीने से लथपथ पर सबर कहाँ हमसे पहले खाने बैठ.गये वो लोग़ । भूख जो जोरो पर थी ….खाना भी अच्छा बना था । हम भी खाने बैठे गुनिन बोला दादू इतनी मिर्ची मुँह जल गया …बाबूजी का
जवाब ….बिना मिर्च मसाले के कही स्वाद आता है और कहते कहते स्वर धीमा हो गया और अम्मा हँस पड़ी बाबूजी भी हँस दिये और लगने दो सब के ठहाके …हम भी शामिल हो गये ।
सात आठ दिन निकल जाने से सब की दाढ़ी बढ़ चुकी थी । ये लोग़ तो घऱ मेंं खुद बना लेते पर बाबूजी खुद नहीं बनाते नाई से बनबाते है । अब जा नही सकते ।
तो ये यानी ड़ा साहब बोले मेंं बना देता हू इसमे क्या है अपनी भी तो बनाते है ।
लो जी बाबूजी की दाढ़ी बनाने का एक नये संग्राम की शुरुआत हो गई । सब इतने उत्सुक की बस …एक विशेष बात बाबूजी मूछें रखते थे कहते थे मूछें तो मर्दो की शान होती है ….ये गमछा वमछा यानी तौलियाँ लगा के तैयार । हम सब एक टक ऐसे देख रहे थे जैसे ये कोई ऑपरेशन कर रहे हो । धीरे धीरे बाल कटने लगे की तभी उड़ते बालो के कारण इनको छींक आ गईं ..कत्ल हो गया हाय रब्बा बाबूजी की आधी मूँछ गायब उस्तरे के वार से शहीद होकर जमीन पर पड़ी थी । सन्नाटा छा गया इनका मुँह देखने लायक गुनहगार की तरह सर लटका लिया और हम सब आवाक ….
बाबूजी चुप चाप एक हाथ कटी मूँछ पर रख के इनको गुस्से से घूर रहे थे । एक बार तो हम सब बड़ा डर गये पता नहीं बाबूजी अब क्या करेगें …तभी अम्मा इनके कांधे पर हाथ रखा और बोली …अब क्या बच्चे की जान लोगे कट गईं तो कट गईं । घऱ की खेती है फ़िर उग आएगी अम्मा का कहना हुआ और सब का हँसना चालू पर ये परेशान से बाहर चले गये । बाबूजी कुछ भी नही बोले बस सोफे पर मुँह लटका कर गमगीन से बैठ गये ।हम सब परेशान.ये कहाँ चले गये । आधा धण्टा निकला होगा की ये कल्लू नाई को लेकर आये बाबूजी कल्लू नाई को देख के भड़क गये ..पहले नहीं ला सकता था अब लाया है …कल्लू भी बाबूजी की आधी मूंछ देख के मुस्कुरा दिया ।
कल्लू ने दाढ़ी बनाई बची हुई मूँछ को भी शहीद कर दिया । बाबूजी बार बार मूछों पर हाथ फेरते जो उनकी आदत थी पर साफाचट मैदान पर हाथ फ़िसल जाता । और अम्मा आँखो से इशारा करती koi.बात नहीं । और हम हँसते पर दबी जुबान से । शाम को फ़िर tv का समय हुआ सब आकर बैठे गये। ये सब से बाद मेंं आये । बाबूजी के पास जगह खाली थी पर डर के कारण वहाँ नहीं बैठे ..बाबूजी ने इनका हाथ पकड़ा और खींच कर अपने पास बैठा लिया फ़िर एक धौल जमा कर बोले बर्खुरदार ..घऱ की .खेती है फ़िर उग आएगी …मस्त रह इनका चेहरा देखने लायक खिसियानी सी हंसी हँस दिये …..और लॉक डाऊन का बोझिल सा महौल फ़िर एक सम वेद हंसी से गूँज उठा ।

जि़न्दगी जिन्दा दिली का नाम है
मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते है । इसी भाव के साथ लॉक डाऊन बिताया जो अविस्मरणीय पलो मेंं तब्दील हो गया ॥

ड़ा इन्दिरा गुप्ता यथार्थ
राजस्थान

Leave a comment