समता “अरुणा”

🌺भूरे बालों वाली गुड़िया🌺
🌺#लंबी कहानी🌺
“भोलू ,इस बार होली के मेले से मैं भूरे बालों वाली गुड़िया लाऊंगी।’ मुन्नी ने खुश होते हुए कहा।
” गुड़िया लाऊंगी, शक्ल देखी है अपनी, बिल्ली कहीं की।भोलूं ने जीभ दिखाते हुए मुंह बनाया।
तू क्यों चिढ़ता है रे? मैं गुड़िया क्यों नहीं ला सकती?
मुन्नी ने हाथ नचाया।
“पैसे कहां से लाएगी? मेले में मुफ्त में खिलौने थोड़े ही मिलते हैं। रोकड़ा होना चाहिए रोकड़ा। बिन पैसे कोई हाथ नहीं धरने देता।भूरे बालों वाली गुड़िया लाऊंगी….. मेरा ठेंगा।’ गोलू ने अंगूठा दिखाते हुए फिर चिढ़ाया।।
” पैसे क्यों नहीं हमारे पास? मेरी दादी के पास ढेर सारे पैसे हैं ।पैसे की क्या बात करता है। देखना इस बार मैं गुड़िया ही लाऊंगी।’ मुन्नी ने जोर देकर कहा। “देख मुन्नी खूब सपने देख। सपना देखने में कुछ खर्च नहीं होता खूब देख। भूरे बालों वाली गुड़िया ही क्यों ,हाथी… घोड़े…..
और……
गुल्लक भी लाना….. ढेर सारे पैसे हैं ना तेरी दादी के पास…..
आई बड़ी पैसे वाली।’ भोलू के साथ पूरी मंडली जोर-जोर से ठहाके लगाकर हंसने लगी।
“बच्चू मेले वाले दिल देखना। अभी तुझसे बहस करके मैं अपना माथा क्यूं ख़राब करूं?’ कह कर मुन्नी रुआंसी हो करअपने घर की ओर तेज कदमों से चल पड़ी।
मुन्नी की दादी अभी घर नहीं लौटी थी। वह पास के गांव में मजदूरी करती थी बिना मां-बाप की मुन्नी को बड़े कष्ट उठाकर पाल रही थी। कई बार जब कोई काम नहीं मिलता तो नमक के साथ रोटी या पानी पीकर ही सोना पड़ता था, लेकिन वह मुन्नी की हर ख्वाहिश को पूरा करने प्रयास करती। पिछले दिनों एक सेठ के यहां मजदूरी करने गई थी तो वहां से मिला अचार का डिब्बा जिसे सिर्फ मुन्नी के लिए खोलती थी, को कई दिनों तक चलाया था।
दरवाजे पर किसी के पांवों की आहट सुन मुन्नी के कान खड़े हो गए ,”दादी ….दादी …चिल्लाती हुई
दरवाजे की तरफ दौड़ी। लेकिन वहां किसी को भी ना पाकर उदास हो गई थी। आज उसे इंतजार करना बहुत बुरा लग रहा था। दादी के आते ही भोलू, हरिया झुमरी, काली, झम्मन सब की शिकायत करेगी। बड़े आए चिढ़ाने वाले।
” दादी आज इतनी देर क्यों लगाई लगा रही है? उसने खुद से प्रश्न किया।” शायद काम ज्यादा होगा ,तब तक पाठ याद करती हूं।’ मुन्नी ने किताब खोल कर बोलना शुरू किया। तोता, तोता, मेला, मेला..
ऊंची आवाज में मुन्नीने दोहराया और मेले के सपने में खो गई। पिछली बार जो भूरे बालों वाली गुड़िया देख कर आई थी,इस बार वह उसे अवश्य खरीदेंगी। अब तक तो खत्म हो गई होंगी सारी। इस बार जाने हो ना हो सोचकर मुन्नी उदास हो गई। किंतु अगले ही पल बुदबुदाई “मेरी दादी कहीं से भी ढूंढकर दिला देगी’,इस बार कुछ भी हो जाए भूरे बालों वाली गुड़िया जरूर खरीदूंगी ।अपनी गुड़िया को हमेशा अपने पास रखूंगी। किसी को नहीं दूंगी। भोलू को तो कतई नहीं दिखाऊंगी। धनिया झुनिया को भी नहीं दिखाऊंगी ,वे भी उसी का साथ देती हैं। ना…. ना ..
उन दोनों को तो दिखा दूंगी ।
अरी! मुन्नी बिटिया क्या कर रही हो ?आज मुए मालिक ने छोड़ा ही नहीं ।मजूर का खून पी लेते हैं ।और दिहाड़ी देते समय वही रोना-धोना “आज पैसे नहीं, कल ले जाना। कल जाओ तो फिर फिर कल ……..
“दा….दी’ मुन्नी ने दादी से लिपटते हुए कहा।
“आजा मेरी बच्ची ।पूरा दिन तेरी चिंता रहती है। क्या करूं तुझे अकेले छोड़ते वक्त जी बहुत कटता है किंतु इस पापी पेट का क्या करूं? शरबती ने मुन्नी को गोद में उठा लिया।
“दादी, आज पता है क्या हुआ?
“क्या हुआ? किसी ने…
.”भोलू ने बहुत सताया दादी।’ मुन्नी ने मासूमियत से कहा।
“क्या कहता हैं वह पाजी?’दादी के स्वर में परेशानी साफ़ झलक रही थी।
“कहता था हमारे पास पैसे नहीं है। दादी, क्या हम गरीब हैं?
” हट पगली! कौन कहता है हमारे पास पैसे नहीं है ।उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान मत दिया कर
तू तो मेरी राजकुमारी है।
मेरी अच्छी दादी, मेले में चलेंगे ना? इस बार मैं भूरे बालों वाली गुड़िया लाऊंगी। छोटी सी गुड़िया। मुन्नी ने दादी की खुशामद की।
अच्छा बाबा, दिलवा दूंगी। और कुछ।
और कुछ तो…….. बस मेहंदी भी लगवानी है। “लगवा लेना।’ दादी ने अपने वात्सल्य से मुन्नी को सराबोर कर दिया।
“मेरी अच्छी दादी।’मुन्नी खुशी से उछल पड़ी। “अच्छा छोड़, मुझे खाने का जुगाड़ करने दे। धोती के पल्लू में बंधी हुई गांठ खोलने का उपक्रम किया।
” क्या है दादी?’मुन्नी ने उत्सुकतावश पूछा।
” कुछ नहीं बिटिया। जिनके यहां काम पर गई थी उस आदमी की औरत बहुत ही भली है।आज पेट भर खाना खाने को दिया और घर के लिए भी दे दिया ।दादी ने पल्लू में लिपटी कागज की पुड़िया शिकारी। और उसके हाथ पर रख दी।
” दादी ,पूडियां!!!अचार….पूड़ियां कितने दिनों बाद मिली है खाने को …हर रोज़ उन्हीं के घर काम करने जाया करो……कम से कम खाने को तो ………..’
“धत् पगली! कोई रोज काम थोड़ी करवाता है। आज काम पूरा हो गया। कल जाने काम मिले ना मिले।’दादी ने लंबी सांस ली…. अंधेरा हो गया मुन्नी, जरा लालटेन जला दूं ।
“दादी, हमारे घर में लट्टू क्यों नहीं जलता? भोलू के घर में तो……’
“भोलू, भोलू, भोलू नाम मत ले उस पाजी का। हां ज्यादा झटपट खाना खा और सोने आ जा। मैं बिछोना तैयार करती हूं।’दादी नाराज़ होने का नाटक किया।
मुनिया ने चटखारे लेकर खाना खाया और जाकर दादी के पास लेट गई।
“दादी मेले में 2 दिन बचे हैं पैसे तो है ना? याद रखना मुझे भूरे बालों वाली गुड़िया…….।’
“सो जा बिटिया, दिलवा दूंगी भूरी बालों वाली गुड़िया। पूरे दिन की थकी हारी दादी की आंखों में नींद भरी हुई थी कुछ देर में ही दादी खर्राटे भर रही थी। पर मुन्नी की आंखों में नींद कहां थी…. वह भूरे बालों वाली गुड़िया के बारे में ही सोच रही थी..
दर्जी काका से कितने दिनों से वह कपड़ों की बची हुई कतरनें इकट्ठा कर रही थी। बस अब गुड़िया मिल जाए तोउसे रोज रोज नए कपड़े पहनाएगी ।सोचते सोचते मुन्नी की उंगली उसकी फटी हुई फ्रॉक में उलझ गई और वह थोड़ा और खिसक गई। पर मुन्नी तो ख्यालों में गुड़िया को नए नए वस्त्रों से सजा रही थी। दादी के खर्राटे बहुत तेज हो गए थे।
“दादी ,दादी।’मुन्नी ने दादी को किसी तरह जगा दिया “हूं ,सो जा। दादी ने उसे अपने पास खींच लिया।
“मेरी बात सुन दादी, मेरी बात सुन। दादी फिर नींद में सो गई।
“दादी’ मुन्नी जोर जोर से चिल्लाई।
दादी हड़बड़ा कर उठ बैठी, “क्या हुआ? क्या हुआ मुन्नी?
मुन्नी धीरे से मुस्कुराई, “दादी याद है ना, भूरे बालों वाली….
“सो जा ना बिटिया। याद है।’ दादी ने मुन्नी को छाती से चिपका लिया ।
मुन्नी भी आश्वस्त होकर ममतामय आगोश में निश्चिंत होकर सो गई।
आखिर मेले का दिन आ ही गया ।पिछले दो दिन मुन्नी के लिए दो युगों के बराबर गुजरे थे ।दादी को रोजाना मुन्नी को उसने सुबह उठने के लिए माथापच्ची करनी पड़ती थी लेकिन आज मुन्नी ने ही दादी को जगाया। होली के दिन मुन्नी के गांव से दो तीन कोस की दूरी पर धर्मपुरा गांव में बड़ा मेला भरता था दूर-दूर से लोग आते थे। मुन्नी दादी की उंगली थामे धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। किंतु कुछ उम्र का तकाजा और उससे ज्यादा दुखों से टूटा हुआ शरीर…..
शरबती की सांस उखड़ने लगी।।आठ बरस हुए उसका बेटा सरजू और बहू महुआ घरों में माटी पहुंचाने का काम करते थे। एक बार माटी खोदते समय मिट्टी का टीला ऐसा गिरा कि छह माह की बच्ची को शरबती के हवाले कर दोनों ही इस दुनिया से विदा हो गए। बेटा बहू के जाने के बाद शरबती जिंदा लाश की तरह हो गई थी ।। पर मुन्नी को जिंदगी देने की कवायद में शरबती एक बार फिर जीने का साहस जुटा रही थी।
“ए सरबती! तनिक तेज़ चल नहीं तो इहां ही शाम हो जाएगी।’ केसरी ने पीछे मुड़कर आवाज दी।
“तुम चली बहन,हम दादी पोती भी पहुंच रहे हैं।’ शरबती ने मुन्नी को कंधे पर बिठा लिया था। खूब तेज तेज कदमों से चलने का प्रयास किया लेकिन गरीबी और दुख दिया था कुछ कदम चलते ही उसकी सांस फिर सेउखड़ने लगी।
“इससे तेज नहीं चल सकते मुन्नी।’ दादी ने मुन्नी को कंधे से उतारते हुए कहा।
“दादी, कहीं भूरे बालों वाली गुड़िया कोई और ले गया तो…..
“नहीं बिटिया वहां बहुत सारी होती हैं..
तू चिंता ना कर।
‘ दादी धनिया और हरिया भोलू तो पहले ही पहुंच गए होंगे। वे लोग….
” सब्र कर, हम भी पहुंच जाएंगे बेटी। दादी ने मुन्नी को पुचकारा।
जैसे तैसे शरबती पोती को मेले में लेकर पहुंच गई दूर-दूर तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। आदमी औरत बच्चे बूढ़े सभी। आखिर बरस में एक ही बार मेला लगता था। दूर-दूर से लोग मेला देखने आते थे ।सामान बेचने वाले और खरीदने वाले सभी दूर-दूर से आते थे। मुन्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। आज उसके मन की मुराद पूरी होने वाली थी। कितने दिनों से भूरे बालों वाली गुड़िया के साथ सपनों में खेलती रही है,आज सचमुच उसके हाथ में होगी। सोच कर ही फूल कर कुप्पा हो रही थी। मेले में ठसाठस भीड़ थी। तरह-तरह की दुकानें सजी थी। कहीं कोई गुब्बारे वाला भोपू बजा बजाकर बच्चों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा था तो खिलौने वाले तरह-तरह के सुर में बच्चों को अपनी ओर लुभा रहे थे। कचोरी बेचने वाले गरमा गरम कचौड़ियां तल रहे थे ।पानी पुरी की ठेली पर औरतें और लड़कियां गपा गप पानी पूरी निगल रही थीं। मेहंदी रचाने वालों के पास भी कम भीड़ नहीं थी। कालू हलवाई फटाफट जलेबियां तल रहा था जो भी मेले में आता था जलेबियां खाए बगैर नहीं रह पाता।
” मुन्नी, जलेबी ले लूं।’ दादी ने पोती की तरफ देखकर पूछा ।
“नहीं-नहीं, दादी बाद में ।पहले भूरे बालों वाली गुड़िया।’ मुन्नी ने दादी को खींचते हुए कहा।
“लेकिन बिटिया कुछ तो खा ले ।सब खा रहे हैं।
“नहीं नहीं बाद में। पैसे खत्म हो गए तो मेरी गुड़िया.
..
तू तो बिल्कुल अपने बाप पर गई है वह भी मन का बडा पक्का था।’ दादी की आंखें भर आई
“दादी देखो गुड़िया की दुकान। मुन्नी दादी की उंगली छुड़ाकर तेरी से भीड़ की धक्का मुक्की में शामिल हो गई ।दादी पीछे से चिल्लाती रह गई लेकिन मुन्नी इन बातों से बेखबर आगे बढ़ी जा रही थी।
” काका, भूरे बालों वाली गुड़िया दिखाना जरा।
“कौन सी बिटिया?’
“वो वाली’
“अच्छा बिटिया,’ यह लो ।’
मुन्नी ने गुड़िया को उलट पलट कर देखा।
“अच्छी है।’
“अच्छी तो है बिटिया। खरीदनी है?’
“खरीदनी है काका। क्यों नहीं खरीदनी। बस दादी पहुंच जाए। बूढ़ी है ना थोड़ा समय लगेगा। काका ये वाली गुड़िया किसी को मत देना।
“लेकिन बिटिया अगर नहीं बेचूंगा तो कैसे काम चलेगा ?

उधर शरबती का कलेजा मुंह को आ रहा था।  भीड़ को चीरती हुई शरबती आगे बढ़ने का प्रयास कर रही थी किंतु जितने कदम आगे बढ़ाती एक ही धक्के में उससे ज्यादा पीछे पहुंच जाती। शरबती को काटो तो खून नहीं। क्या करें? किसी पुकारे? उसके गांव के लोग भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे थे। आधा घंटा बीतने को था। दादी ने मुनिया को ढूंढने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी थी। लगातार मुन्नी को आवाज़ लगा रही थी, रो रोकर बेदम हो गई थी। शरबती को समझ में नहीं आ रहा था कि किधर जाए ?इतनी भीड़ में छोटी सी गुड़िया को कहां ढूंढे? आज मुन्नी सेठानी की दी हुई गुलाबी फ्रॉक पहन कर खुद ही गुड़िया लग रही थी..…ऊपर से उसके भूरे बाल  भगवान मेरी बच्ची की रक्षा करना…
वह तो खुद ही भूरे बालों वाली गुड़िया है ……
उसे भूरे बालों वाली गुड़िया की क्या जरूरत…. मुझ बुढ़िया की ही मति मारी गई थी जो उसे मेले में लेकर आई….. हे भगवान! क्या करूं? कहां ढूंढू अपनी बच्ची को? ए मुन्नी! कहां है तू? दादी को छोड़ कर कहां चली गई बिटिया? देर हो रही है वापस आ जा …..शरबती दहाड़े मार-मार कर रो पड़ी। शरबती के पास भीड़ इकट्ठी हो गई थी। क्या हुआ..
क्या हुआ… लोग कानाफूसी करने लगे।
” अरे! यह तो अपनी दादी है । भोलू चिल्लाया
दादी ,दादी रो क्यों रही हो? झम्मन कालीव हरिया के साथ भोलू दादी की ऐसी हालत देखकर सहम गए थे।
“तुम लोग इस औरत को जानते हो?’ एक भद्र महिला ने बच्चों से पूछा।
” हां। यह मुन्नी की दादी है। मुनिया कहां गई है? तीनों बच्चों ने एक स्वर में कहा।
ओह! अब समझ में आया इस की पोती गुम हो गई है। इसलिए रो रही है। भीड़ में से एक आदमी ने कहा।
” मुनिया गुम हो गई! लेकिन कहां? कैसे? दादी .. कुछ तो बोलो।’ हरिया और भोलू दादी के कंधों को पकड़ कर हिलाने लगे।
“दादी, मुन्नी कहां है?
दादी अपनी धुन में रोए जा रही थी।
“दादी, होश में आओ। बताओ मुन्नी कहां है? भोलू दादी के कान में जोर से चिल्लाया।
“भोलू!’ दादी फटी आंखों से भोलू को देख रही थी। अरे पाजी! अब किस को तंग करेगा! मुन्नी पता नहीं कहां चली गई? वह  भूरे बालों वाली….. भूरे बालों वाली गुड़िया…कहते कहते दादी अचेत हो गई।
शरबती को थोड़ी देर बाद चेत हुआ तो लोगों की बातें सुन सुन कर उसका मन घबरा उठा। सभी अपने अपने ढंग से बच्ची को ढूंढने की सलाह दे रहे थे। शरबती के गांव के लोग भी आ पहुंचे थे।
“सरबती, चिंता ना करो बहन। मुन्नी को कुछ नहीं होगा हम सब है ना।’ रामू नंबरदार ने खांसते हुए कहा।
“चिंता कैसे ना करूं नंबरदारजी, जवानी में बेवा हुई तो बेटे पर उम्र काटी, बेटा बहू गए तो इस लड़की को सहारा माना और अब भगवान……. शरबती. फफक-फफक कर रो पड़ी।
“कुछ नहीं होगा सरबती। धीरज रखो मुन्नी मिल जाएगी।हम सब ढूंढने में लगे हैं। कस्तूरी ने कहा।
बहुत डर लगता है  कोई उठा कर ना ले गया हो मेरी बच्ची को।शरबती फिर सुबकी।
  “डर तो सच्चा है बहन। पांच बरस पहले सोनू पंडित की बिटिया भी तो तो इसी मेले में गायब हुई थी। आज तक सुराग नहीं लग पाया। बेचारा ढूंढ कर पागल हो गया। कौन ले गया? कहां ले गया? धरती निगल गई या अंबर खा गया । दरोगा भी कुछ नहीं कर पाया।’ बिजली ने धोती के पल्लू से आंखें पोंछते हुए कहा।
“जाने क्या करते हैं ये बच्चे उठाने वाले लोग बच्चों का? चमेली ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा।
करते क्या है सुना है बच्चों को गूंगा, लूला, लंगड़ा बना उनसे भीख मंगवाते हैं। भगवान से डर नहीं लगता इन राक्षसों को।
लड़कियों के साथ तो बहुत बुरा सलूक करते हैं यह राक्षस। उन्हें थोड़ा सा बड़ा होते ही धंधे में उतार देते हैं कमीने। रामप्यारी ने भी दो आंसू टपकाएं। पिछले साल ही…
क्या हुआ था?
एक लड़की को मेले से उठा लें गए थे तीन रईसजादे बेचारी का नाश करके मार कर झाड़ियों में फेंक दिया था।
यह बात सुन शरबती पर  मनों पानी गिर गया था। उसका मन पत्ते की तरह कांप उठा। वह पत्थर की मूर्ति की भांति लग रही थी बिल्कुल बेजान निशब्द।
डेढ़ घंटा और बीत गया। मुन्नी को ढूंढने  गए हुए लोग थक कर निराश होकर वापस लौट आए थे। शरबती पेड़ के तने से सिर टिकाकर बैठी थी। दिन ढल रहा था। मेला अपने चरम पर था। मेले में कोलाहल बढ़ता जा रहा था। कुछ देर पहले तक जो लोग शरबती को घेरे खड़े हुए थे वे भी अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ़ चले थे।
शरबती और उसके गांव के लोग अभी तक वहीं पर डटे हुए थे। सबने सोच विचार कर फैसला लिया कि मुन्नी की गुमशुदगी की रपट मेले में बनाए गई अस्थाई पुलिस चौकी में कर दी जाए।
जब शरबती को लेकर गांव वाले वहां पहुंचे तो  वहां दरोगा हड़पराम और फेंकूचंद कुर्सियों पर पांव फैलाए हुए पड़े थे।
“दरोगा साहेब!’ नंबरदार ने आवाज दी।
का है? दरोगा साहिब…पता नहीं कहां से आ जाते हैं मगज खाने।
काहे चढ़े आ रहे हो भाई ? वहीं रुक जाओ।’फेंकूचंद ने फटकारा, साहिब आराम फरमा रिए हैं।
सिपाही जी , हमारी बिटिया…. शरबती ने हाथ जोड़कर कहना चाहा।
“का भाग गई का?दो चार दिन घूम फिर कर आ जाएगी।’ शरबती को आंखें दिखाता हुआ बीच में ही फेंकूचंद बोला।
“नहीं सिपाही जी।’
“तो का किसी ने गोली मार दी तुम्हारी बिटिया को क्यों मचा रहे हो? आने दो अंदर। सरकारी नौकर है भाई। काम तो करना ही पड़ेगा। हां तो बताओ माई क्या हुआ? दरोगा हड़पराम ने पान की पीक थूकी।
दरोगा की मीठी बात सुनकर शरबती को थोड़ी हिम्मत बंधी और एक ही सांस में सारी बात  उसके सामने बता दी।
“देखो माई, हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे। तुम्हारी मुन्नी को ढूंढने की। विश्वास रखो तुम्हारी मुन्नी तुम्हारे घर पहुंच जाएगी।’
फेंकूचंद  आज तो भाई सुबह से नाश्ता भी नहीं किया। पेट में चूहे दौड़ लगा रहे हैं ।हलक सूख गया है कहीं से कुछ जुगाड़ कर।हड़पराम ने जम्हाई लेते हुए कहा।
“सुन बुढ़िया इतनी तो समझ है तुझ को। बिना कुछ खाए दरोगा साहब इतनी मेहनत कैसे करेंगे? तुझे अपनी मुन्नी चाहिए ना? दरोगा साहेब जी सेवा कर मुन्नी भी घर वापस आ जाएगी।’सिपाही शातिराना अंदाज में बोला।
शरबती ने नंबरदार की ओर प्रश्नसूचक नज़रों से देखा।
“जी हवलदार साहब।’ नंबरदार ने पलटकर शरबती की ओर देखा।
“शरबती कुछ …..?’
“हां…..
हां और उसने कपड़े के झोले से कई परतों के नीचे दबी हुई छोटी सी थैली निकाली। कांपते हाथों से थैली नंबरदार के हाथों पर रख दी।
कई महीनों से एक एक पैसा जोड़कर जमा किए थे मुन्नी के लिए भूरे रंग के बालों वाली गुड़िया लाने के लिए……. वाह!रे ऊपर वाले….. तेरी माया तू ही जाने। आज भूरे बालों वाली गुड़िया के लिए ही…..
यह बात और है कि नकली गुड़िया के लिए नहीं वरन….. असली……बस मेरी गुड़िया मुझे मिल जाए कहीं से… कैसे भी…सही सलामत…..
शरबती के होंठों से अस्फुट से शब्द निकल पड़े।
वह तो अपनी गुड़िया  के लिए कुछ भी कुर्बान कर सकती थी।
“यह लो साहेब।’ नंबरदार जी ने दरोगा साहब को थैली देते हुए कहा।
“अरे! नहीं, नहीं। इसकी क्या जरूरत है ।
“अजी जरूरत कैसे नहीं। मालिक खाली पेट तो भजन भी नहीं होते फिर मुन्नी को भी तो ढूंढना है।’
“मुन्नी मिल जाएगी ना साहेब?
” हां.. हां. कैसे नहीं मिलेगी। तुम लोग चलो। हम मुन्नी को ढूंढ कर लाते हैं।’ दरोगा हड़प सिंह ने थैली को जेब में ठूंसते  हुए कहा।
उधर दुकानदार मुन्नी को भूरे बालों वाली गुड़िया के साथ खुश होकर खेलते देख कर अपने ही विचारों में खोया हुआ था। बिल्कुल मुन्नी जैसी शक्ल सूरत वाली उसकी बेटी को गांव में फैली हैजे की बीमारी ने छीन लिया था। बरसों बाद बिल्कुल अपनी बेटी जैसी छोटी सी बच्ची को देखकर उसके मन में मोह जाग गया था। मुन्नी के कहने पर उसने भूरे बालों वाली गुड़िया किसी को ना बेची।
“बिटिया शाम हो गई, अंधेरा होने वाला है ।तुम्हारी दादी तो अब तक नहीं आई।
“हां काका, दादी तो नहीं पहुंची। पता नहीं कहां गई। काका वह जरूर आएगी। तनिक ठहरो। मुन्नी एकदम सहम गई।
“नहीं बिटिया रात होने वाली है। मैं तनिक दुकान को समेट लूं। फिर तुम्हारी दादी को ढूंढने चलते हैं। कह कर  खिलौने वाले ने दुकान को समेटना शुरू  किया और अपने साथ लगाए दोनों मजदूरों को सामान को संभालने का निर्देश देते हुए मुन्नी की उंगली पकड़े मेले से बाहर की तरफ चल पड़ा।
“हम कहां जा रहे हैं काका?
” बिटिया, दरोगा साहब के पास। तुम्हारी दादी ढूंढते हुए जरूर उनके पास रपट लिखाने जरूर जाएगी।
  “काका, मेरी दादी मिल जाएगी ना?बच्ची अब रो रही थी।
” हां बिटिया, क्यों नहीं मिलेगी । तुम रोओ मत।
“अगर नहीं मिली तो क्या तुम मुझे यही छोड़ जाओगे?
“नहीं बिटिया, तुम्हारी दादी जरूर मिलेगी। मैं हूं ना ।खिलौने वाले ने मुन्नी के आंसू पोंछते हुए कहा।

खिलौने वाला मुन्नी की उंगली थामे तेज कदमों से पुलिस चौकी की तरफ चल पड़ा। मुन्नी के हाथों में भूरे बालों वाली गुड़िया थी। अब मुन्नी बेहद आश्वस्त  थी। सबको भूरे बालों वाली गुड़िया दिखाएगी। खिलौने वाले काका को पैसे भी दिलवाएगी।
मुन्नी ने मन ही मन सोचा।
“लो बिटिया आ गई चौकी। खिलौने वाले ने लंबी सांस ली।
शरबती गांव वालों के साथ चौकी के बाहर बैठी दरोगा साहब के बाहर निकल कर मुन्नी को ढूंढने जाने के इंतजार में उदास बैठी थी।मन में बुरे ख्याल आ रहे थे जाने उसकी नन्ही गुड़िया किस हाल में होगी?
भोलू ने मन ही मन भगवान से  प्रार्थना की”हे! पीपली वाले, हमारी मुन्नी को मिला दो। मैं सवा रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगा।मैं कभी उसे तंग नहीं करुंगा।’
बाकी बच्चे भी बहुत दुखी थे ।
“अरे मुन्नी! दादी मुन्नी आ गई। भोलू हरिया झम्मन झुनिया ने एक साथ शोर मचाया।सारे बच्चे खुशी से उछल पड़े।
शरबती के पांवों में राम जाने कहां से इतनी ताक़त आ गई थी, उसने दौड़कर मुन्नी को  छाती से चिपका लिया।
“मेरी बिटिया, कहां चली गई थी?  तुझे क्या पता दादी पर क्या क्या बीती?’
“हमने कहा था ना माई तुम्हारी बिटिया तुम्हें मिल जाएगी। दरोगा ने मूंछों पर ताव लगाया।
“दादी, काका को पैसे दो। मुन्नी ने भूरे बालों वाली गुड़िया को हवा में लहराते हुए कहा।
“दरोगा साहब, अब आपको मेहनत करने की जरूरत नहीं है हमने जो भी पैसे दिए थे……।’
लंबरदार ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“एहसान फरामोश!  तुम लोग नहीं सुधरने वाले। मै न कहता था साहिब इन लोगों को मुंह लगाने की जरुरत नहीं।”फेंकूचंद फुंफकारता हुआ बोला।
” अरे चुप बैठ।देखो माई तुम्हें तुम्हारी बिटिया चाहिए थी। मिल गई अब इसी खुशी में दावत तो बनती ही है। क्यूं माई?’ दरोगा ही ही कर ज़ोर से हंसा। उसके साथ ही उसकी तोंद भी खुशी से नाच उठी और कमीज़ का बटन गश खाकर जमीन पर गिर पड़ा।
” दादी काका को पैसे दो। भूरे बालों वाली….।’
“हां मुन्नी।’ दादी ने लुटे हुए राहगीर की भांति झोले में कुछ ढूंढने का उपक्रम किया।
“नहीं, नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं बहन।
  यह हमारी तरफ से उपहार समझो।हम भी तुम्हारे काका हैं बिटिया।
“तुम्हारी अमानत तुम्हारे हवाले किए देते हैं बहन।’खिलौने वालों  की आंखों में खुशी के आंसू थे।
दादी ने मुन्नी को बार-बार चूमा,”मेरी भूरे बालों वाली गुड़िया’ सभी खुशी खुशी अपने गांव की ओर वापस चल दिए।
आसमान में चांद तारों के साथ अपनी धवल चांदनी बरसाकर अपनी खुशी जाहिर कर रहा था। 
           समता “अरुणा”

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