डॉ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ

गुड़

गुड़ शब्द …सुनते ही पीला गन्ने के रस से बना मीठा सा गोल मटोल सा गुड़ का डेला नज़रों के सामने नाचने लगता है ।
कई मुहावरो मेंं इसे स्थान प्राप्त है …जैसी गुड़ खाये गूलगुलों से परहेज करे ॥
जितना गुड़ डालो उतना मीठा होगा ॥
गुड़ ना दे पर गुड़ की सी बात तो कहो ॥
अक्सर बडो से ये मुहावरे सुनतीआई हू पर अर्थ नही जानती थी ।
एक दिन हमारी बड़ी बुआजी जो, बहुत कर्कशा थी जब भी किसी से भी बात करती हमेशा कड़वा बोलती सीधी सी बात क़ो भी, कड़वे शब्दों के द्वारा बुरा बना देना उनका प्रिय शगल था ॥ घर मेंं सब उनसे कतराते कोई उनके पास ना बैठता …दीदी की शादी थी हमेशा की तरह बुआजी की कड़वी वाणी के तीखे बोल सभी के दिल क़ो यथावत छलनी कर रहे थे ॥गलती से उस दिन निशाना दीदी बन गईं । वो बुआजी कि बातों से दुखी हो चौकी पर बैठीं बैठीं ही रो पड़ी ।
अचानक जैसे सन्नाटा सा छा गया फूफा जी जो एकदम शान्त स्वभाव और परम स्नेही थे जोर से बोल उठे …बस भी कर भाग्यवान कितना कड़वा बोलेगी..गुड़ नही दे सकती पर गुड़ जैस.बात तो कर सकती है।
शायद तेरे इसी कड़वे स्वभाव कि वजह से भगवान ने हमें आ तक़ सन्तान सुख से वंछित रखा ॥
और फूफा जी रो गये ….बुआजी , , क़ो जैसे सांप सूंघ गया शादी का भरा पूरा घर सन्नाटे मेंं डूब गया ….बुआजी कुछ ना बोली दीदी के आँसू पोंछ कर खुद ही रो पड़ी । पहली बार हमने उस दिन बुआजी क़ो रोते और फूफा जी क़ो गुस्सा करते देखा ॥
खैर सब काम सिमटा पर मेरे नन्हे मन पर एक प्रश्न चिन्ह छोड़ गया …गुड़ ना दे गुड़ कि सी बात कहे ये क्या बात हुई गुड़ कोई बात करता है भला …. जब मुहावरे का अर्थ समझ आया तब जाना …गुड़ कि सी बात कहने का मतलब सदैव मीठा बोलना चाहिए ….वर्ना भगवान भी नाराज हो जाते है और सजा दे देते है ….
तब से जब भी मैं जोर से गुस्सा करती हू …फूफाजी कि कही बात कानो मेंं गूंजने लगती है और …गुस्सा खतम ॥
कितनी छोटी सी बात और अर्थ कितना गहरा …..जो मेरी डाक्टरी पेशे मेंं बड़ा कारगर साबित हुआ ….धन्यवाद फूफा जी

डॉ़ यथार्थ ।

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