स्व.नन्दराम लखेरा : एक जीवट व्यक्तित्व

डॉ सी एस वर्मा की✒️ से..
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‘मृत्यु एक अटल सत्य है’.. संसार मे जो भी प्राणी आता है..उसका जाना भी अवश्यंभावी होता है ।  यह सब कुछ जानते हुए भी  अपनों के जाने का दुख होता है लेकिन जीवन मे *कुछ लोगों से इतना करीब का रिश्ता रहता है कि उनके बिछोह को सहन कर पाना हमारे लिए अति पीड़ादायी होता है ।*
  *2 दिसम्बर, 2020 के उन मनहूस पलों को* भुला पाना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल है जब मुझे मेरे *पिताश्री के निधन* की सूचना मिली ।
  पिताजी कोरोना से पीड़ित थे और पिछले 21 दिन से अस्पताल के *गहन चिकित्सा कक्ष में जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे ।* पिताजी के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित था इसी कारण ठीक से नींद नही आ रही थी । *रात को 2 बजे* अस्पताल से बेटे के फोन की घण्टी से मन आशंकित हो उठा । फोन उठाया तो… *‘बाबा नही रहे’* सुनकर दिमाग सुन्न होने लगा । *ऐसा भी हो जाएगा…कभी स्वप्न में भी नही सोचा था* क्योंकि पिताजी अपने जीवन मे इससे पहले कभी अस्पताल में भर्ती तक नही हुए थे । 75 वर्ष की आयु में भी… *सुबह-सवेरे उठकर स्न्नान करना, सैर पर जाना, बिना चश्मे के अखबार पढ़ना तथा प्रतिदिन 15-20 कि. मी. साइकिल चलाना*.. उनके दैनिक और नियमित कार्य थे ।   *होठों पर मुस्कान लिए औरों को खुशियाँ बांटने वाले, जीवन मे कभी भयभीत न होने वाले और स्वस्थ शरीर को ‘स्टील बॉडी’ मानने वाले पिताश्री* अचानक ही अपने जीवन की बाजी हार जाएंगे… *दिल आज तक भी स्वीकार नही कर पा रहा है* । जीवन मे पहली बार मैंने उनकी आंखों में आँसू देखे । जब भी में उनसे मिलने *आई सी यू में जाता तो हृदय की धड़कन बढ़ जाती और पैर काँपने लगते । नजरभर देख उन्हें दिलासा दिलाता परन्तु अपने ही आसुंओं को छुपाता हुआ, उदास मन से मैं वापिस लौट आता ।* संयोग से आज *2 तारीख* ही है और पिताजी को दिवंगत हुए *ठीक छह मास* का समय बीत गया है ।   *पिताजी के जीवन-द्वंद्व की वे  घटनाएं यथावत आज भी अतीत के चलचित्र की मानिंद मेरे मानस-पटल पर थिरक रही हैं*।
    *दोस्तो ! जीवन के जिस मुकाम पर आज मैं खड़ा हूँ..वह सब मेरे स्व. पिताजी के कारण ही संभव हो पाया है ।*
पिताजी की पहचान *‘पर्यावरण-प्रहरी’* के रूप में अधिक थी । घर के आसपास तथा सार्वजनिक स्थानों की सफाई करना, बरसात के मौसम में *पौधरोपण करना तथा पशु-पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करना*, उनकी सेवा-भावना को उद्घाटित करता है ।
*स्व. पिताजी के द्वारा लगभग 13 साल पहले सार्वजनिक जगह पर लगाया गया  पीपल का पौधा, अब विशाल पेड़ बनकर वातावरण में प्राण वायु का संचरण कर रहा है ।* अपनी शीतल छाया प्रदान करते हुए *यह पीपल का पेड़ जहाँ पक्षियों का बसेरा बना हुआ है वहीं उनकी लगाई हुई त्रिवेणी भी धीरे-धीरे विकसित होती हुई अपने आयुर्वेदिक तत्वों को अभिसंचित करती जा रही है ।* पर्यावरण-संरक्षण के प्रति उनके समर्पण भाव को सम्मान प्रदान करने हेतु  *पिताजी स्व. नन्दराम लखेरा को ‘श्रीराम सेवा ट्रस्ट’* द्वारा  *पर्यावरण-प्रहरी* के सम्मान से भी नवाजा गया था । 
*सादगी और ईमानदारी से जीवन यापन करना,  निष्ठापूर्वक कर्तव्य का निर्वहन तथा परोपकार की भावना जैसे पावन संस्कारों का कुछ ‘अंशदान’ भी पिताश्री के सान्निध्य से ही मिल पाया ।*
  यह कहते हुए कि *धर्म की जड़ सदा हरी* पिताजी समझाते थे कि *हमे सदैव ही धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए..अंततः  जीत धर्म की ही होती है ।* उनका कहना था कि *आत्म-ग्लानि के साथ जीने से तो.. स्वाभिमान के साथ मरना बेहतर है ।*

यद्यपि आज पिताजी *दैहिक रूप से* हमारे बीच नही हैं परंतु हम सदैव ही *उनके उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हुए* उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का प्रयास करेंगे ।
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*इन हवाओं में, इन फ़िज़ाओं में सुवास बाकी है*
*धरा-गगन पर तेरा उजास बाकी है*
*तुम यहीं कहीं हो आस-पास कि..*
*तेरा सुखद अहसास बाकी है*
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( *स्व.नन्दराम लखेरा जी की मधुर स्मृतियों को सादर समर्पित…*)
डॉ सी एस वर्मा ‘प्रभाकर’
अटेली मंडी,महेन्द्रगढ़
   हरियाणा।
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