नेमीचंद शाण्डिल्य

जो लौट के घर ना आये
समीक्षा-प्रकोष्ठ :
आदरणीय सर्वश्री कार्यक्रम-अध्यक्ष डॉ ललितमोहन जोशी,कार्यक्रम-संयोजिका डॉ इंदिरा गुप्ता ‘यथार्थ’, मंच-संचालक श्री शैलेन्द्र सिंह एडवोकेट एवं डॉ रेखा शर्मा’ समीक्षक-मण्डल के विद्वान साथी श्री वी एम बेचैन सहित सभी प्रतिभागी कविजन एवं कार्यक्रम सूत्रधार डॉ सी एस वर्मा ‘प्रभाकर’ एवं कार्यक्रम में अपनी गरिमामयी उपस्थिति के साथ शालीन श्रोतामण्डल के तमाम मित्रों का हृदय की गहराई से अभिनन्दन व आभार व्यक्त करते हुए निवेदित हैं संक्षिप्त कुछ विचार :
इस भौतिक संसार में अपनी जीवन्त उपस्थित से अपने होने का अहसास कराने वाले हमारे अपने कोरोना क्रूर काल में मृत्यु का ग्रास बन गये।
इससे बचने-बचाने के उपक्रम में अपनों ने बहुतेरे हाथ-पांव मारे ।
किसी भी कीमत पर जनहानि न हो इसी फिक्र में मोटे कर्जदार भी हो गये । मगर जान-माल की इस हानि को रोक नहीं पाये।
इस हौच-पौच अवस्था में प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए । हमारे डॉक्टर्स , वैद्यराज , चिकित्सा योद्धाओं ने भरसक प्रयत्न किये…कवि-कवयित्रियों ने शालीनता का परिचय दिया है । इस त्रासदी के दूसरे पहलू पर लेखनी नहीं चला कर।
आपदा को अवसर में बदलने के माननीय प्रधान सेवक के मूलमंत्र को अपने स्वार्थ के हिसाब से परिभाषित करने वाले मानवता के दुश्मन , मृतकों में परिजनों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठाने वाले शैतान भी इसी समाज के हिस्सा हैं । जरूर उन्होंने कुछ अधिक रकम अपना रुतबा बढ़ाने के लिए इकट्ठा कर ली होगी । लेकिन वे बेनकाब हो कर भी फिर यहीं काबिज हैं। कानून उन्हें क्या सजा देगा , वक्त बतायेगा
ईश्वर उनके किये की सजा क्या देगा ? कोई नहीं बता सकता।
यह पीड़ित समाज उन्हें बहुत बड़ी सजा दे सकता है , उनका पूर्णतया बहिष्कार करके ।
न मार-काट करनी , न लड़ाई-झगड़ा ।
उन्हें यह अहसास कराके कि तुमने अपना काम किया , अब हमें अपना काम करने दो ।
पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं है कि किस-किस चीज के लिए किस-किस ने गिरने की सीमाएं लांघी हैं !!
सभी जानते हैं कि जो गये उन्हें कोई भी लौटा कर नहीं ला सकता । फिर भी आपने अपने गीतों के माध्यम से पीड़ित पक्ष का बहुत हौंसला बढ़ाया है ।
अब एक काम और आपकी बाट जौह रहा है — मृतक परिवारों का पुनर्वास
उनको सरकार की राहत योजना के द्वार तक पहुंचाना । यथा संभव कागज कार्यवाही करवाना , सही सूचना , सही संस्थान , विभाग तक उन्हें पहुंचाना , मिलवाना ।
( यहां भी सतर्कता कि किसी बिचौलिए का शिकार न हो जायें ।)
इस प्रकार की सेवा-सहायता करना भी मानवता का ही काम होगा । आपने सहानुभूतिपरक ( sympathetic ) तथा समानुभूतिपरक ( empathetic ) रचनाएं लिख कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है । सहानुभूति वाचकों ने यही संदेश दिया है कि भले ही हमने अपने निजी जन नहीं खोये लेकिन आपके साथ हमारी हार्दिक संवेदनाएं हैं
सहानुभूति वाचकों ने अपनों को खोने का दंश सहा है और उसी दर्द को उनके साथ सांझा किया है जिन्होंने अपने खोये हैं। यह किसी रचना को उत्तम- मध्यम बताने की प्रतियोगिता नहीं है । बस भरभराये कण्ठ से आपका आभार है कि आपने उन पीड़ितों का दर्द महसूस किया है जो अपने न हो कर भी अपने हैं।
इस कार्यक्रम के लिए आपने अपना अमूल्य समय दिया , इसके लिए यह मंच आपका सदैव ऋणी रहेगा।

आपका अपना नेमीचंद शाण्डिल्य बासदूदा रेवाड़ी ।
( समीक्षक )
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