दिनेंद्र दास

कहानी
अति सर्वत्र वर्जेत

सूर्या अपने घर के सामने चलते व्यक्ति को बुला लेता था । "भैया प्लीज! पांच मिनट के लिए आइए न...!" जब कोई भी व्यक्ति उनके घर में आ जाता तब सूर्या अपनी पत्नी से कहता - " सरोजिनी ! चाय बना दो न...!" सरोजिनी सूर्या और घर में आए व्यक्ति को चाय बनाकर पिलाया करती। सूर्या कभी-कभी कहते कि चाय के साथ थोड़ा पकौड़ी, बड़ा आदि- आदि भी हो जाए तो अच्छा होता...!" दरअसल सूर्या को दिन में कई बार चाय पीने की आदत थीं और एक-दो दिन में तो पकौड़ी ,बड़ा मिलना ही चाहिए । उनकी पत्नी अकेले के लिए कुछ बनाना झंझट समझती इसलिए सूर्या अपने मेहमानों, रिश्तेदारों एवं मित्रों को फोन से बुलाते रहते और खिलाते- पिलाते रहते । मेहमान, रिश्तेदार और मित्र तो बदल- बदल कर आते पर रोज के तेलाई बैठने से सरोजिनी परेशान हो गई थीं । एक दिन वह सूर्य से बोली- "ये रोज-रोज का झंझट मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है ।आप रोज तेल से बनी चीजें खाते- पीते रहते हैं। आज ये बनाओ तो कल वो बनाओ। मैं तुम्हारे व्यवहार से ऊंब चुकी हूं। इससे निजात पाने के लिए मैं मायके जा रही हूं। फिर आप बनाते -खाते रहना।" कहकर सरोजिनी मायके चली गई। कुछ ही देर बाद उनके पीछे- पीछे सूर्या भी अपने ससुराल पहुंच गए। सरोजिनी सूर्या को देखकर बोली- "अरे, आप भी यहां आ गये!" "क्यों नहीं... यहां तो खाने -पीने को मिलेगा...!" सरोजिनी एक सप्ताह तक अपने मायके में रही। सरोजिनी के साथ सूर्या भी ससुराल में जम गया। कभी बड़े साले के यहां, तो कभी मझले के यहां, तो कभी छोटे साले के यहां, तो कभी और नेमी- प्रेमी के यहां खातिरदारी होती रही । कहीं हलवा- पूड़ी, तो कहीं लपसी ,तो कहीं खीर ,समोसा ,बड़ा पकौड़ी आदि । सूर्या के लिए तो मानो बिना मौसम की बारिश होने लगी । सूर्या जमकर खाने -पीने लगे उसे तो मजा आ गया । धीरे - धीरे सूर्या के पेट में दर्द होने लगा।उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर उनके पेट का एक्सरे किये, तो पता चला उनकी आंत सूजन हो गई है तब सूर्या को लगा सरोजिनी सही कहती थी। उनका कहना, मैं टोकना समझता था और बुरा मानता था पर मैंने अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारा है । जिभ्या स्वाद के वशीभूत होकर अधिक मिर्च - मसाले, तेजतर्रार, तेल की बनी चीजों के सेवन करने से मेरा बुरा हाल हो गया।" मुझे कबीर साहेब की एक साखी याद आ रही है-

अति का भला न बोलना, अति की भला न चूप । अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
अति सर्वत्र वर्जेत।
(मेरी प्रमाणित प्रकाशित कहानी)
लेखक
दिनेंद्र दास
कबीर आश्रम करहीभदर
अध्यक्ष मधुर साहित्य परिषद् तहसील इकाई बालोद ,जिला- बालोद (छत्तीसगढ़)
मोबाइल
85648 86665

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