दिनेद्र दास

प्रेरक कहानी
आपत्ति में सहायता
एक गाय को दलदल में फंसी देखकर सियार फूला नहीं समाया। मन ही मन प्रसन्नता पूर्वक सोचने लगा अब मुझे कहीं मारा-मारी फिरने की जरूरत नहीं है। मेरा शिकार तो सामने हैं। गाय का मांस खूब कई दिनों तक जी भर कर खाऊंगा और नदी का पानी पीता रहूंगा। इसी आशा से गाय की ओर लपका गाय सियार की मनसा जान गई। उसे सावधान करती हुई बोली-” भाई सियार, मैं इस समय आपत्ति में हूं । दलदल में फंसा हूं । मुझे बाहर निकालने में सहयोग करो । नहीं तो यहां से चले जाओ। इसी में तुम्हारी कुशलता है। मेरा मालिक मुझे ढूंढते हुए आएगा और मुझे निकाल ले जाएगा। यदि तुम कहीं मुझे असहाय एवं निर्बल जान कर हमला किया और कहीं दलदल में फंस गया तो तुम्हें निकालने वाला कोई नहीं मिलेगा। क्योंकि तुम्हारा व्यवहार ही अच्छा नहीं है। संध्या के वक्त हुंआ हुंआ आवाजें करते हो और रात्रि में सोये हुए लोगों की नींद हराम करते हो।”
सियार गाय की बातों को अनसुनी करते हुए छलांग लगाया और गाय के पास पहुंच गया और क्रोधित होकर कहा- ” मुझे ज्ञानी की तरह उपदेश मत दो ।अपने हाथ आये शिकार को भला कोई छोड़ता है!” कहकर गाय पर हमला करने की कोशिश करने लगा। परंतु सियार गाय तक नहीं पहुंच पाया बल्कि दलदल में धंस गया और छटपटाता रहा। कुछ ही समय में गाय का मालिक गोपाल आ गया और सियार को दो-चार डंडे लगाया और गाय को खींचकर दलदल से बाहर निकाला। गाय प्रसन्नता से अपने मालिक के पास घर आ गया और सियार वहीं दलदल में फंसा पश्चाताप करता रहा कि मैंने लोभ में पड़कर कर अपने प्राण को संकट में डाल दिया।अंततः सियार के प्राण पखेरू उड़ गये।
दूसरों के अहित करने वाला की दशा यही होती है। हमें आपत्ति काल में दूसरों की सहायता करनी चाहिए। सहायता न कर सके तो भी उनका शुभ सोचना चाहिए न कि उनको सताना एवं कष्ट देना चाहिए ।
लेखक
दिनेद्र दास
कबीर आश्रम करहीभदर
अध्यक्ष मधुर साहित्य परिषद् तहसील इकाई बालोद, जिला- बालोद
मो. नं. 8564886665

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