— डाॅ.आलोक कुमार यादव
*ग़ज़ल*
तुझे पास अपने बुलाया कन्हैया,
मुझे तूने कितना सताया कन्हैया।
किया है सदा मैंने तेरी ही पूजा,
न अपना मुझे क्यों बनाया कन्हैया ।
सदा नाम तेरा लिया जिंदगी में,
मुझे और कोई न भाया कन्हैया।
मिली जिंदगी में मुझे जो भी खुशियाँ,
तुम्हीं ने मुझे तो दिलाया कन्हैया।
वही फिर सुना दो मुझे तुम तराना,
जहां को कभी जो सुनाया कन्हैया।
करूँ मैं अरज बस यही आज कान्हा,
मुझे पार भव से कराना कन्हैया।
करे आज आलोक विनती ये तुमसे,
परम रूप अपना दिखाना कन्हैया।
डाॅ.आलोक कुमार यादव
एसोसिएट प्रोफेसर
विधि संकाय
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
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