लल्लू भिखारी धर्मशाला

#दिनेंद्रदास
प्रेरक कहानी
*लल्लू भिखारी धर्मशाला*

         मंत्री जी रोज मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाते और मंदिर से बाहर निकलते समय गेट पर वही भिखारी उसे रोज मिलते । मंत्री जी उसे सौं रुपये देते हैं तब  भिखारी उसे कहता, “जितना दोंगे कम है।”    
           मंत्री जी को भिखारी की बातें बुरी लगती है, परंतु उन्हें वृद्ध समझ कर कुछ नहीं बोलते। मंत्री जी नित्य की तरह आज भी  भगवान के दर्शन कर निकल रहे थे तभी वही  भिखारी कटोरा लिए मंत्री महोदय के सामने हाथ बढ़ाया। तब मंत्री ने पूछा, “बाबा! आपको कितना दूं ।”
         भिखारी ने कहा, “बस,मेरी इच्छा पूरी कर दो।”
         मंत्री महोदय हंसते हुए कहा, “बाबा! इस दुनिया में आज तक किसी की इच्छा पूरी नहीं हुई है फिर आपकी इच्छा…! आपकी क्या इच्छा है? भला बताओ तो सही।”
            भिखारी ने कहा , “आप मेरी सपना साकार कर सकते हैं । वायदा करें तब मैं आपको बताऊं। इसके पहले आपको मेरी बीती राम कहानी सुननी होगी।”
          मंत्री महोदय ने कहा, “अच्छा बाबा! आज तुम्हारा ही सुन लेते हैं सुनाओ!”
         भिखारी ने कहा, “पहले मैं प्राइवेट नौकरी करता था । शादी हुए एक वर्ष हुए थे। रोड एक्सीडेंट से मेरा दोनों पैर कट गये। नौकरी से हाथ धोना पड़ा। अपाहिज समझकर पत्नी भी मुझे छोड़कर मायके चली गई।  बूढ़े मां-बाप के इलाज में लाखों रुपये खर्च हुए, परन्तु मैं अपने मां- बाप को बचा नहीं  सका। मुझे घर बेचना पड़ा । तब से मंदिर के बरामदे में गुजर- बसर करते आज मुझे चालीस बसर हो गये। यहीं पर बैठकर भीख मांगना मेरा व्यवसाय हो गया। मेरा कोई बाहरी खर्चे है नहीं…! ना है कोई आगे पीछे खाने पीने वाले हैं। मैंने अपने  जीवन में भीख मांगकर एक-एक पैसा जोड़कर  दस लाख रुपये इकट्ठा की है। मेरी हार्दिक इच्छा यह है जैसे मैं दूसरे बनाए हुए द्वार पर चालीस बसर रहा वैसे ही मैं एक धर्मशाला बनाऊं जिसमें अनेकों बेघर को छाया मिल सके । परन्तु मैं अपाहिज इस कार्य को साकार नहीं कर सकता। मैं योग्य व्यक्ति ढूंढ रहा हूं। मेरे सपनों को साकार शायद आप कर सकते हैं। मैं तुम्हें पूरे दस लाख दे दूंगा”
       मंत्री महोदय ने आश्चर्य से कहा, ओह… “बाबा!दस लाख रुपयें…! रुपये कहां रखें हैं।”
         “मैं रुपये वट वृक्ष के नीचे जमीन में गाड़ कर रखा हूं ।यदि आप धर्मशाला खोलने का वायदा करें तो मैं आपके हाथों में रुपये दे दूंगा।”
        मंत्री महोदय बोले, “जरूर बाबा जी! आपकी सपना साकार करूंगा। मैंने अपने जीवन में बहुत से धर्मात्मा देखा पर आप जैसे दानवीर धर्मात्मा नहीं देखा। धर्मशाला के लिए जमीन  मैं दिलाऊंगा और धर्मशाला बनवा भी दूंगा।” उस भिखारी ने अपने सभी भिखारी साथियों से धर्मशाला के नाम से और लाखों रुपये सहयोग राशि इकट्ठा की।
           एक वर्ष बाद धर्मशाला  बनकर तैयार हुआ । धर्मशाला के उद्घाटन में मंत्री महोदय ने सभी भिखारियों को आमंत्रित किया। विशेष दानदाता भिखारी का खूब स्वागत सत्कार किया गया और उस धर्मशाला का नाम उसी भिखारी के नाम पर लल्लू भिखारी धर्मशाला रखा गया।
              लेखक
         दिनेंद्र दास
कबीर आश्रम करहीभदर
अध्यक्ष, मधुर साहित्य परिषद् तहसील इकाई बालोद ,जिला बालोद (छत्तीसगढ़)
मो.85648 86665
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