मां की पुकार

                    —– राजेश कुमार साहू फोर्स
हे!अंम्बिका प्रसू जग की जननी माता तुम,
निज कर्तव्य तले बंधा सदैव तेरे दर से दूर।
एक राग सदैव गूंजती नित गांउ तेरे जस को,
सरहद से है वंदन स्वीकार करो हूँ मैं मजबूर।

माता गजब सजी नौ दिन का दरबार तुम्हारा,
नौ रूपों में प्रतिष्ठित धरा का  मान बढ़ाया हैं।
हे!कल्याणी तेरे शरण से सबकी झोली भरा,
सीमा पर भी तेरी जय जयकार खूब लगाया हैं।

तू शक्ति है!तू ही भक्ति है! सब वीरों की हैं मांँ
हो युद्ध का शंखनाद जब सदा विजय हमारा है।
मेरा मुझमें कुछ नहीं सदैव शरण में तुम्हारी मांँ,
आग की दरिया में कूदा ये शेर-लाल तुम्हारा है।

हे!अंम्बे मेरे मन में सदा कसक हमेशा रहती है,
तुझे पूजने वालों के बीच बेटियों की हालत बुरी है
जैसे तुमने हर दंभ-दनुज अभिमानी खत्म किए।
ओ राक्षस अब क्यो जिंदा हैं बना बैठा मजबूरी है।

*राजेश कुमार साहू फोर्स  *नन्हा शायर*
   मों.७९८७६१३२५२

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