डॉ• मुक्ता

बन काली करो मर्दन

शर्म आती है
हर दिन बेटियों के साथ होते
दुष्कर्म के हादसों को देख कर
हृदय में उठ रहा बवाल
कब थमेगा
यह दरिंदगी का सिलसिला
और शांत होगा सुनामी का क़हर
उठो! पहचानो
अपनी सुप्त शक्तियों को
और सिरफिरे दुष्कर्मियों का
काली बन कर डालो मर्दन
हो जाएं वे इस क़दर बेहाल
कि तड़पते हुए अंतिम सांस तक
विवश हो मांगते रहें
प्राणों की भीख
व लगाते रहें दया की ग़ुहार
यही होगा तुम्हारा
निष्काम कर्म
व देश की बेटियों के रक्षार्थ
नैतिक दायित्व-वहन
●●●डॉ• मुक्ता●●●

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