शाहाना परवीन

शीर्षक :- कुछ प्रश्न
        
नारी से मांगी जाती है चरित्र की प्रमाणिकता,
कोई विकल्प नहीं रह जाता शेष सिवाय टूटकर बिखर जाने के।

नारी पर जब लगाए जाते आरोप अपनो ही के द्वारा,
कुछ भी कहने-सुनने को नहीं रह जाता शेष सिवाय होंठ सिल जाने के।

बेहद दुखद है इस प्रकार का व्यवहार नारी जाति के प्रति,
क्या रह गया शेष जीवन में जैसे आसान नहीं था सीता का धरती में समां जाने के।

अपराध बोध मे जीती नारी जब, बिना कोई अपराध किए,
कोई नही खड़ा होता साथ,सिवाय दुखी मन का सहारा बन जाने के।

महिला दिवस पर बधाई मिलती हैं समस्त  नारियो को,
जुग्गी झोपड़ी में झांको, अर्थ ज्ञात नहीं महिला दिवस का सिवाय अज्ञान के।

यह कहना नहीं सरल कि पुरूषो से आगे हैं आज की नारी,
अन्यथा सड़को पर बिखरेगा तेज़ाब कठिन होगा बच पाना नारी के।

कुछ पुरूषो द्वारा आज भी समझी जाती पैरो की जूती नारी,
गली, नुक्कड़ पर होते बलात्कार, दुर्योधन रावण सामने खडे़ नारी के।

शाहाना परवीन…✍️
पटियाला पंजाब

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