चंचल हरेंद्र वशिष्ट

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मैं हिन्दी दिवस मनाती नहीं….
मैं हिन्दी दिवस मनाती नहीं……..केवल
मैं औपचारिकता निभाती नहीं….
मैं हिन्दी को अपनाती हूं……. व्यवहार में, विचार में, संस्कार में, सत्कार में
मैं हिन्दी का उत्सव मनाती हूं…..प्रतिदिन…प्रति क्षण….केवल एक दिन नहीं
हिन्दी का उत्सव मनाने का उसी को अधिकार है..
जिसने भावों की अभिव्यक्ति के लिए किया हिन्दी को स्वीकार है!
नहीं बैर किसी भाषा से भारतीय चाहे विदेशी हों
पर सिरमौर निज हिन्दी भाषा का किया आदर सत्कार है!
मुझे गर्व हिंदी भाषा पर, मुझे हिंदी से प्यार है!
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चंचल हरेंद्र वशिष्ट

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