सौम्य सवेरा

#राजेशपाण्डेयवत्स
सौम्य सवेरा!
छंद *मनहरण घनाक्षरी!*
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प्राची ओर अट्टहास,मेघ घूमे रवि पास,
तन मन भर उठा,
*नीर दिया ढेर तू!*

भाद्रपद अब आया,एक दिन हो न जाया,
इन्द्र को भी बोल देना,
*सुन लेना टेर तू!*

प्रसन्न कृषक मन,हरित पठार वन,
संतुलित वृष्टि लिये,
*मेघ नभ घेर तू!*

शुभ भोर दिन खास,परिणत वत्स आस,
जग सुखी रखो राम,
*मत कर देर तू!*

–राजेश पान्डेय वत्स!0812 23 04©MPP6065K
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*सौम्य सवेरा*
_मनहरण घनाक्षरी_
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उषा की मृदंग बजी,विहंगों की टोली सजी,
नमन-वन्दन अब,
*सेज शैय्या खाट के!*

चकाचौंध उजियारा,मेघ छुपे भानु प्यारा,
तिलक सा सज गये,
*अम्बर ललाट के!*

भादो बहे कल-कल,बड़ी बून्दें धरातल,
सजे से प्रभात आये,
*क्या कहने ठाट के?*

शुभ भोर शनिवार,राम आये तेरे द्वार,
साँकल तो खोल वत्स,
*मन के कपाट के!*

-राजेश पाण्डेय वत्स 0813 0901 *©MPP6065K*
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*पग!*
छंद-मनहरण घनाक्षरी
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कमल समान पग, कँटीले कानन गये,
अमर सुयश देव,
*अवध बिहारी है!*

कमल समान पग,शबरी कुटिया गली,
सदियों से पथ तके,
*एक दुखियारी है!*

पादुका पग की वही,भरत के शीश सजे,
वीर श्रेष्ठ अविकारी
*भाई का पुजारी है!*

पग वही अहिल्या को,श्राप से भी तार गया,
वत्स झुके पग वही,
*पूजे नर-नारी है!*

-राजेश पाण्डेय वत्स 0813 ©MP

*सौम्य सवेरा!*
छंद *मनहरण घनाक्षरी!*
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*जय माँ भारती!*
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सूरज धवल धार,जय हिन्द जयकार ,
रोशन भारत वर्ष ,
*ऊँची शान के लिये!*

मातृभूमि मन भाये,आजादी के गीत गायें,
बावन सेकण्ड तप,
*राष्ट्र गान के लिये!*

भारती के वीर बाला,झाँसी रानी बनो ज्वाला,
प्रेरक प्रसंग बनें,
*ये जवान के लिये!*

वत्स खोजे लाल बाल,भगत सुभाष पाल,
झंडा ऊँचा रखे राम,
*हिन्दुस्तान के लिये!*

–राजेश पान्डेय वत्स! 0814 14 14 ©MPP6065K
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*एक खुशी!*
छंद – कवित्त
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एक खुशी हरियाली बरखा प्रदान की है,
एक खुशी हम तुम
*रहे मित्रवत में!*

एक खुशी पवन की अंग में सुरभि भरी,
एक खुशी मन भायी
*आपके संगत में!*

एक खुशी और जगदम्बिका भारत माता,
आजादी का सुधा-पर्व
*दिखा गई छत में!*

वत्स खुशीमय मातृभूमि का स्वागत देख,
सबसे महान खुशी
*राम पद नत में!*

-राजेश पाण्डेय वत्स 0814 ©MPP6065K
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सौम्य सबेरा!!
छंद *मनहरण घनाक्षरी!*
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*जय हिन्द नाद!*

भास्कर भारत भाग,आजादी के लिये राग,
सुखद दिवस नव,
*विदा दें राकेश को!*

शरणदायिनी धरा,सुधामयी सुखदात्री,
ऋषि भूमि जग माने,
*भारत संदेश को!*

वत्स पूर्व देव बसे, दक्षिण पश्चिम सजे,
तरसते सब चाहे,
*उत्तर प्रवेश को!*

राम श्याम जहाँ जन्म,बुद्ध व विवेकानन्द,
बहती पावन गंगा,
*धन्य कहें देश को!*

–राजेश पान्डेय वत्स! 0815 15 ©MPP6065K
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