#राजेशपाण्डेयवत्स
*फुलवारी!*
छंद-मनहरण घनाक्षरी!
覆鹿華
*यहाँ* देखो चमेली के,सुमन के पुष्प गुच्छ,
मन कहे सृष्टि के ये,
*कैसी पच्चीकारी है?*
*वहाँ* खिला विष्णुकांति,सतरंगा भाँति-भाँति,
केवड़ा सफेद पीला,
*छटा अति न्यारी है!*
*जहाँ* तक नैन जाता, एक फूल दिख जाता,
गुलतुर्रा बनफूल,
*उगे स्वेच्छाचारी है!*
*कहाँ-कहाँ* बीज कंद,गुच्छन प्रसून गंध?
राम की अचला वत्स,
*इक फुलवारी है!*
-राजेश पाण्डेय वत्स!
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覆鹿
_सौम्य सवेरा!_
छन्द – *मनहरण घनाक्षरी!*
बहन की राखी जैसा,सूरज वो दिखे वैसा,
अक्षय अमोल पल ,
*सावन के मास के!*
सप्त अश्व गोटे डाला,मंगल बन्धन वाला,
किरणों की डोरी मानों,
*धवल कपास के!*
प्रेम से परागमयी,भारती हर्षित बाला,
स्नेहिल ये गाँठ बाँधे,
*भाई जो है पास के!*
वत्स वाणी मधु घोल, भोर का तो शुभ बोल,
सर्वसुखी अभिलाषा,
*राम के ही दास के!*
–राजेश पान्डेय वत्स!0811 22 03 सावन पूर्णिमा २०७९ ©MPP6065K
मेरी बहना!
छन्द *मनहरण घनाक्षरी!!*
प्रेम है अनंत उसे, नेह रखे वह जिसे,
उर में बसाके जहाँ,
*प्रीत की उँचाई है!!*
मन धन सब हारे, गंगा तन मुख प्यारे,
आँचल में अनुराग,
*नींद भी चुराई है!!*
रक्षा सूत्र हाथ झूले,स्नेह प्रेम कहाँ तुले?
थप – थप पग ले के,
*ठुमकत आई है!!*
सुभद्रा है खुद बनी, प्रफुल्लित छवि धनी,
हँसकर वत्स मुझे,
*गोविन्द बताई है!!*
–राजेश पान्डेय वत्स!!©MPP6065K 0811 22 1116
*संध्या वंदन!*
छंद- कवित्त
सावन के अंतिम पश्चिमी छोर देव आये,
किरणों की जोर नहीं
*अब न सविता में!*
कलरव विटप बरसे टपटप संग,
कल-कल खल-खल
*ध्वनि है सरिता में!*
शाम का बसेरा महासुख घर तेरा-मेरा
हँसी-खुशी भर जाते
*बेटियाँ वनिता में!*
राम राम सजीला रसीला लगे भोर-संध्या,
और क्या अक्षर वत्स
*सजाऊँ कविता में?*
-राजेश पाण्डेय वत्स 0811 ©MPP6065K
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