कुछ नया करते हैं

★★★ रमा बहेड ★★★
चार दिन की जिंदगानी है,
फिर सबकी खत्म कहानी है,
क्यों ना इसको हंसकर बिताते हैं,
चलो कुछ नया करते हैं।
सत्य का मंडन करते हैं,
दंभ का खंडन करते हैं,
वेदों के बल से,
युक्ति के प्रबल से ,
प्रगति के पथ पर चलते हैं ,
चलो कुछ अच्छा करते हैं ।
गिरे हुए को उठाते हैं,
भटकों को राह दिखाते हैं ,
सब कहते हैं हम करके दिखाते हैं, जीत के लिए फिर से मेहनत करते हैं,
चलो कुछ नया करते हैं ।
नया दिन है,। नया साल है, कुछ व्यंजन नये बनाते हैं,
खुद भी खाते हैं,
दूसरों को भी खिलाते हैं,
गत वर्ष की असफलता को,
सफलता में बदलते हैं ,
चलो कुछ नया करते हैं। 
************ रमा बहेड हैदराबाद तेलंगाना राज्य

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